Jharkhand Movement का चेहरा रहे शिबू सोरेन को आखिर आंदोलनकारी की मान्यता के लिए क्यों देना पड़ा आवेदन?
Jharkhand Movement : शिबू सोरेन ने झारखंड आंदोलनकारी की मान्यता के लिए आवेदन दिया है

Jharkhand Movement : दशकों तक चले लंबे आंदोलन और संघर्ष की बदौलत बिहार के दक्षिणी हिस्से को लगभग ढाई दशक पहले 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य का दर्जा मिला। लेकिन 24 साल बाद भी झारखंड आंदोलनकारियों की आधिकारिक पहचान का काम जारी है और अक्सर इसी पर राजनीति भी होती रहती है। दिलचस्प यह है कि आंदोलन के प्रमुख नेता शिबू सोरेन, जिन्हें “दिशोम गुरु” कहा जाता है, उन्होंने अब तक आंदोलनकारियों की लिस्ट में शामिल होने के लिए कोई पहल नहीं की थी।
लेकिन दो सप्ताह पूर्व उन्होंने अचानक झारखंड आंदोलनकारी चिन्हितीकरण आयोग को एक आवेदन भेजा, जिससे वह खुद को “आंदोलनकारी” मान्यता के लिए पंजीकृत करा सकें। आयोग के अध्यक्ष दुर्गा उरांव ने पुष्टि की कि प्रारंभिक जांच के आधार पर गृह विभाग ने उनकी पहचान 75वीं औपबंधिक सूची में दर्ज कर दी है। सूची में शिबू सोरेन का पूरा विवरण—पिता स्व. सोबरन सोरेन, ग्राम नेमरा, प्रखंड गोला, जिला रामगढ़—शमिल है।
झामुमो की प्रतिक्रिया
ईटीवी भारत में खबर है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रवक्ता विनोद पांडेय ने इस कदम को “सकारात्मक और समयानुकूल” बताया। उन्होंने कहा कि दिशोम गुरु ने पूरे जीवन आंदोलन (Jharkhand Movement) को समर्पित किया है। उनका यह आवेदन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अगली पीढ़ियों को उनके संघर्ष की जानकारी सरकारी रिकॉर्ड से मिलेगी। इसके अलावा, उन्होंने उम्मीद जताई है कि शिबू सोरेन को आयोग किसी भिन्न और विशेष प्रमाण-पत्र के साथ सम्मानित करे ।

आंदोलनकारी की मान्यता: लाभ और प्रक्रियाएँ
- आधिकारिक प्रपत्र: फिलहाल शिबू सोरेन का नाम केवल औपबंधिक सूची में शामिल हुआ है; इसकी क्रॉस-वेरिफिकेशन प्रक्रिया जारी है।
- अंतिम मंजूरी : सफल जांच के बाद गृह विभाग अधिसूचित करेगा, गजट में नाम प्रकाशित होगा और जिलों के डीसी व कार्यालयों को भेजा जाएगा।
- पेंशन योजनाएं : जेल में बिताए समय के अनुसार:
- 1 दिन कैद → ₹3,500/माह
- 3 माह कैद → ₹5,000/माह
- 6 माह से अधिक → ₹7,000/माह
- आपत्तियों का अवसर: औपबंधिक सूची एक माह खुली रहती है ताकि कोई भी आपत्ति दर्ज करा सके। फिर आवेदन की गहन जांच की जाती है।
इतने वर्षों तक विलंब क्यों?
आंदोलनकारी चिन्हितीकरण आयोग के अध्यक्ष दुर्गा उरांव ने स्पष्ट किया कि शिबू सोरेन जैसे दिग्गज नेता की भूमिका से शायद ही कोई अनजान हो, इसके बावजूद उनके चिन्हित होने में इतनी देरी क्यों हुई – इसका सीधा जवाब यही है कि आयोग स्वतंत्र रूप से किसी को आंदोलनकारी घोषित नहीं कर सकता। आयोग केवल उन लोगों के आवेदन पर कार्रवाई करता है, जो खुद से इसकी मांग करते हैं। शिबू सोरेन की ओर से यह आवेदन हाल में ही आया है। उरांव ने माना कि यह कदम उन्हें बहुत पहले उठा लेना चाहिए था, लेकिन इतनी देर क्यों हुई – इसका जवाब खुद दिशोम गुरु ही दे सकते हैं।
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आयोग की प्रक्रिया और चुनौतियां
उन्होंने यह भी बताया कि किसी को आंदोलनकारी मान्यता देने के लिए जेल में रहने के प्रमाण, गिरफ्तारी की सूचना या FIR की कॉपी जैसे दस्तावेज़ सबसे विश्वसनीय माने जाते हैं। हालांकि, प्रक्रिया को लचीला बनाते हुए आयोग ने अन्य विकल्पों पर भी विचार किया है, लेकिन बड़ी संख्या में आवेदक इस मान्यता के लिए जरूरी साक्ष्य तक पेश नहीं कर पा रहे हैं।
कुछ मामलों में तो लोगों ने दूसरों के जेल प्रमाणपत्र की फोटोकॉपी पर अपना नाम जोड़कर फर्जी दावा किया है। जब आयोग ने ऐसे मामलों की पुष्टि के लिए संबंधित जेल या थाने से संपर्क किया, तो कई दावे झूठे साबित हुए। यही वजह है कि इस प्रक्रिया में अक्सर समय भी लगता है और सत्यापन को प्राथमिकता दी जाती है।
दुर्गा उरांव ने कहा,
“आयोग स्वयं किसी को घोषित नहीं कर सकता। आवेदन देना होता है, फिर प्रमाणित करना होता है।” इसलिए शिबू सोरेन का आवेदन दो सप्ताह पहले आया और यही वजह है कि उनकी पहचान में देरी हुई। यह पूरी प्रक्रिया नियमों के अनुसार और औपचारिक तरीके से चल रही है ।
चिन्हितीकरण आयोग की यात्रा
- 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने झारखंड आंदोलनकारी चिन्हितिकरण आयोग (Jharkhand Movement) का गठन किया, जिसका नेतृत्व जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद करते थे।
- फ़रवरी 2020 तक लगभग 3,500 आंदोलनकारियों को मान्यता मिली।
- जून 2021 में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने फिर से पहल की और आयोग को सख्ती से सक्रिय किया। रिटायर्ड आईपीएस दुर्गा उरांव अध्यक्ष बने।
- सितंबर 2024 से जुलाई 2025 तक आयोग की कार्य अवधि बढ़ाई गई। अब तक 51 हजार से अधिक नामों को मान्यता मिली, उनमें से 40 हजार का क्रॉस-वेरिफिकेशन पूरा हो चुका है ।
शिबू सोरेन जैसे अग्रणी नेता का स्वयं ही आवेदन भेजना यह दर्शाता है कि अब झारखंड आंदोलनकारियों की पहचान केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि आधिकारिक और रिकॉर्डेड होनी चाहिए, जिससे मूल्यांकन, पेंशन और सम्मान जैसी सुविधाएँ सुनिश्चित हों।
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