November 22, 2025

भारतीय इस्पात क्रांति के जनक और औद्योगिक आत्मनिर्भरता के अग्रदूत थे प्रमथनाथ बोस

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प्रमथनाथ बोस ने भारत की खनिज संपदा की खोज, टाटा स्टील की स्थापना में सहयोग, स्वदेशी विज्ञान का समर्थन और जादवपुर विश्वविद्यालय की नींव रखकर भारत के औद्योगिक युग की शुरुआत की। जानिए उनकी प्रेरक कहानी।

P N Bose

Kolkata : जब हम भारत के औद्योगिक इतिहास की बात करते हैं, तो टाटा स्टील, जादवपुर विश्वविद्यालय और स्वदेशी विज्ञान की कल्पनाएं एक साथ उभरती हैं। परंतु इन सबके पीछे एक ऐसा नाम है, जो शायद उतनी बार नहीं लिया गया, जितना वह हक़दार था — प्रमथनाथ बोस, एक दूरदर्शी भूवैज्ञानिक, राष्ट्रवादी चिंतक और भारतीय औद्योगिकीकरण के मौन वास्तुकार।

गांव से वैश्विक मंच तक: प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

प्रमथनाथ बोस का जन्म पश्चिम बंगाल के गैपुर गांव में हुआ था। ग्रामीण परिवेश, प्रकृति से उनका गहरा जुड़ाव, और जमीन की गहराइयों में छिपे रहस्यों के प्रति जिज्ञासा ने उन्हें भूविज्ञान की ओर प्रेरित किया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कृष्णनगर और फिर सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज, कोलकाता में हुई। वर्ष 1874 में उन्होंने प्रतिष्ठित गिलक्रिस्ट स्कॉलरशिप जीती और इंग्लैंड के रॉयल स्कूल ऑफ माइनिंग, लंदन में प्रवेश लिया।

भारत वापसी और वैज्ञानिक योगदान

विदेश से शिक्षा पूरी कर वे भारत लौटे और Geological Survey of India (GSI) से जुड़ गए। उनका काम केवल खनिज खोज तक सीमित नहीं था — उन्होंने सिवालिक पहाड़ियों में जीवाश्मों का अध्ययन, असम में तेल की खोज, और शिलांग पठारमध्य भारत में खनिज सर्वेक्षण जैसे कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे विज्ञान को केवल खोज का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का औजार मानते थे।

स्वदेशी आंदोलन और शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति

प्रमथनाथ बोस स्वदेशी आंदोलन से गहराई से प्रेरित थे। वे मानते थे कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तकनीकी शिक्षा का भारतीयकरण जरूरी है। इसी सोच के साथ उन्होंने बंगाल टेक्निकल इंस्टिट्यूट की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई — जो आज जादवपुर विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है। वे इसके पहले मानद प्राचार्य (Honorary Principal) भी बने।

वैज्ञानिक आत्मविश्वास का प्रतीक

ब्रिटिश शासन के दौरान एक आम धारणा यह थी कि भारतीय विज्ञान और वैज्ञानिक क्षमता में कमजोर हैं। प्रमथनाथ बोस ने इस औपनिवेशिक मानसिकता का विरोध किया। उन्होंने सार्वजनिक रूप से लॉर्ड कर्ज़न के उस प्रयास का विरोध किया, जिसमें जे. एन. टाटा द्वारा स्थापित किए जा रहे Indian Institute of Science को बाधित किया जा रहा था। बोस ने न केवल टाटा का समर्थन किया, बल्कि यह स्पष्ट किया कि भारतीय वैज्ञानिकों में वैश्विक नेतृत्व की क्षमता है

भारत की इस्पात क्रांति की नींव

प्रमथनाथ बोस का सबसे क्रांतिकारी योगदान तब सामने आया, जब उन्होंने उड़ीसा (अब ओडिशा) के मयूरभंज क्षेत्र में लोहे के विशाल भंडार की खोज की। यह सूचना उन्होंने जे. एन. टाटा तक पहुंचाई, जिसने जमशेदपुर में टाटा स्टील की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। यह भारत का पहला एकीकृत इस्पात कारखाना बना — जो देश की औद्योगिक आत्मनिर्भरता का आधार स्तंभ साबित हुआ।

इस योगदान के संदर्भ में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भी बोस की सराहना करते हुए कहा था, “बोस को यह स्पष्ट दिख रहा था कि औद्योगिक विकास ही देश को गरीबी और परतंत्रता से मुक्त कर सकता है।”

विरासत और प्रेरणा

P.N. बोस सिर्फ एक वैज्ञानिक नहीं, बल्कि एक ऐसे विचारक थे जिन्होंने ज्ञान, विज्ञान और राष्ट्रभक्ति को एक सूत्र में पिरोया। उनके प्रयासों ने न केवल खनिज संसाधनों की खोज में क्रांति लाई, बल्कि भारत में वैज्ञानिक सोच और तकनीकी शिक्षा की मजबूत नींव रखी। आज, जब भारत मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, और विज्ञान आधारित विकास की ओर तेजी से बढ़ रहा है, प्रमथनाथ बोस की सोच और योगदान और भी प्रासंगिक हो जाते हैं।


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