News Analysis : भोगनाडीह हूल दिवस हंगामा : सुधीर कुमार की गिरफ्तारी से सनातन के पत्र तक
इस News Analysis में हम बताएंगे सुधीर कुमार की गिरफ्तारी की असली टाइमलाइन, सनातन हांसदा के रहस्यमय पत्र का सच, मंडल मुर्मू और चंपाई सोरेन के BJP कनेक्शन, और क्यों संथाल परगना अब राज्य की सियासत का युद्धक्षेत्र बन चुका है।
News Analysis : मंडल मुर्मू और चंपाई सोरेन की भूमिका के राजनीतिक मायने

News Analysis : भोगनाडीह हर साल 30 जून को आदिवासी क्रांति के प्रतीक ‘हूल दिवस’ का साक्षी बनता है। सिदो-कान्हू की वीरगाथा को श्रद्धांजलि देने के लिए यहां आदिवासी समाज का जमावड़ा होता है। पिछली कई वर्षों की भांति इस बार भी कार्यक्रम की तैयारियां की जा रही थीं। लेकिन इस बार सबकुछ वैसा नहीं था। आइये इस News Analysis में समझते हैं पूरा वाकया।
पहली जुलाई को गोड्डा पुलिस की एक चौंकाने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस ने 30 जून को भोगनाडीह में हूल दिवस के दौरान हुई झड़प के पीछे कथित साजिश के संकेत दे दिये हैं। पुलिस अधीक्षक मुकेश कुमार ने बताया कि भाजपा के सोशल मीडिया प्रभारी सुधीर कुमार और उनके सहयोगी गणेश मंडल को गिरफ्तार किया गया है। दोनों पर आरोप है कि वे ग्रामीणों को भड़काने, पारंपरिक हथियार और कपड़े बांटने जैसी गतिविधियों में शामिल थे, जिससे सरकारी कार्यक्रम में गड़बड़ी फैल सके।
एसपी के मुताबिक, इनके पास से तीन देसी कट्टे, धोती-साड़ी और अन्य वस्तुएं भी बरामद की गई हैं। दोनों पर पहले से ही साहिबगंज में मामला दर्ज है, और गोड्डा, मुफस्सिल और सुंदरपहाड़ी थाना की संयुक्त कार्रवाई में उन्हें पकड़ा गया।
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लेकिन पुलिस की इस कहानी में दरार डालने वाला एक और दस्तावेज सामने आया—एक पत्र, जो सनातन हांसदा नामक व्यक्ति ने 30 जून को ही गोड्डा एसपी को सौंपा। इस पत्र में सनातन ने आरोप लगाया है कि 29 जून की रात को ही सुधीर और गणेश को गोड्डा शहर के एक शोरूम से पुलिस उठा ले गई थी, और तब से कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी गई। अगर यह सही है, तो पुलिस की गिरफ्तारी की टाइमलाइन पर बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है।
झड़प की पृष्ठभूमि: मंच, पूजा और प्रशासनिक असहमति
पूरा विवाद 28 जून से शुरू हुआ, जब सिदो-कान्हू मुर्मू फाउंडेशन के संयोजक और सिदो-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू ने पारंपरिक आयोजन के तहत सिद्धो-कान्हू पार्क में तंबू-पंडाल लगाने शुरू किए। प्रशासन ने बिना अनुमति बनाए गए इन ढांचों को हटवा दिया, जिससे नाराज ग्रामीणों ने 29 जून को पार्क के गेट में ताला जड़ दिया।
30 जून की सुबह जब पुलिस ने ताला खोलने की कोशिश की, तो प्रदर्शनकारियों ने धनुष-बाण, कुल्हाड़ी और पत्थरों से हमला कर दिया। पुलिस ने हल्का लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया। इस हिंसक झड़प में छह पुलिसकर्मी, जिनमें एसडीपीओ नितिन खंडेलवाल भी शामिल थे, और कई ग्रामीण घायल हुए।
मंच और मंशा: कौन किसके साथ?
मंडल मुर्मू की भूमिका सिर्फ एक आयोजक की नहीं थी—वे अब भाजपा में हैं और पहले हेमंत सोरेन के प्रस्तावक रह चुके हैं। यही बदलाव पूरे विवाद की राजनीतिक दिशा तय करता है। 3 नवंबर 2024 को देवघर में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और हिमंता बिस्वा सरमा की उपस्थिति में मंडल मुर्मू भाजपा में शामिल हुए। माना गया कि यह कदम रणनीतिक रूप से उठाया गया था ताकि वे झामुमो के खिलाफ मोर्चा खोल सकें।
चौंकाने वाली बात ये रही कि मंडल मुर्मू ने अपने इस कार्यक्रम में भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन को मुख्य अतिथि बनाया—वही चंपाई सोरेन जिन्हें हेमंत सोरेन ने हाल में मुख्यमंत्री बनाया था और जो अब भाजपा में जाने की अटकलों में हैं।

राजनीति और अस्मिता का टकराव
पुलिस ने कहा कि कार्यक्रम की अनुमति नहीं थी और सार्वजनिक सुरक्षा को देखते हुए लाठीचार्ज किया गया। लेकिन आयोजकों का दावा है कि यह पुलिसिया दमन था और आदिवासी अस्मिता पर सीधा हमला। उनका कहना है कि पूजा स्थल को हटाना, पारंपरिक मंच को तोड़ना और हूल दिवस जैसे ऐतिहासिक दिन पर लाठियों से स्वागत करना, सरकारी तंत्र का असंवेदनशील चेहरा दिखाता है।
बाबूलाल मरांडी से लेकर महेंद्र साहू तक तमाम भाजपा नेताओं ने इसे “ब्रिटिश हुकूमत जैसी बर्बरता” करार दिया और कहा कि यह हेमंत सोरेन सरकार के पतन की शुरुआत है।
सनातन का पत्र: पुलिसिया दावे पर शक की सुई
सनातन हांसदा का पत्र प्रशासन के दावों पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगा देता है। पत्र में साफ-साफ कहा गया है कि 29 जून की शाम सुधीर और गणेश को गोड्डा के वैन ह्यूसेन शोरूम से उठाया गया था। उनका मोबाइल भी पुलिस के साथ चला गया। अगर यह बात सही साबित होती है तो पुलिस की पूरी प्रेस कॉन्फ्रेंस, जिसमें गिरफ्तारी को 30 जून की रात बताया गया है, संदिग्ध हो जाती है।
यहां सीसीटीवी फुटेज की भूमिका अहम होगी, जिससे यह स्पष्ट हो सकता है कि सुधीर कुमार कब, कहां और किसके साथ थे।

भाजपा की बैकफुट पर वापसी और चंपाई की चुप्पी
सुधीर कुमार सिर्फ भाजपा का सोशल मीडिया प्रभारी नहीं, चंपाई सोरेन का करीबी और उनका डिजिटल रणनीतिकार भी रह चुके हैं। चंपाई जब मुख्यमंत्री थे, तब सुधीर कुमार उनके सीएमओ में बैठते थे। अब सवाल है: क्या वे चंपाई के निर्देश पर वहां मौजूद थे? या फिर पुलिस का दावा सही है?
भाजपा इस पूरे घटनाक्रम को “आदिवासी अस्मिता पर हमला” करार देकर राजनीतिक लाभ लेना चाहती थी, लेकिन सुधीर कुमार की गिरफ्तारी और सनातन के पत्र ने उसकी रणनीति को उलझा दिया है। इस वक्त पार्टी बैकफुट पर है, और उस पर यह दबाव है कि वह साबित करे कि सुधीर कुमार की कार्रवाई से उसका कोई लेना-देना नहीं।
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हूल की धरती पर सियासी रण
हर साल होने वाला हूल दिवस इस बार राजकीय आयोजन से अधिक सियासी अखाड़ा बन गया। मंडल मुर्मू और चंपाई सोरेन की अति सक्रियता, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अनुपस्थिति, और ग्रामीणों तथा पुलिस के बीच झड़प ने मिलकर एक ऐसा घटनाक्रम रच दिया जो झारखंड की राजनीति को लंबे समय तक प्रभावित करेगा।
अब निगाहें इस बात पर हैं कि क्या चंपाई सोरेन चुप्पी साधे रहेंगे या अपने पूर्व सोशल मीडिया रणनीतिकार का खुलकर बचाव करेंगे? और क्या भाजपा इस नाजुक मौके को एकजुटता में बदल पाएगी या पुलिस की रिपोर्टों से उसकी छवि को और आघात लगेगा?
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