Jharkhand : गांव में सड़क नहीं, सिमडेगा की गर्भवती को खाट पर लादकर पहुंचाया अस्पताल, क्या यही है मंइयां का सम्मान?
Jharkhand के सिमडेगा जिले के गांव में गर्भवती महिला को खाट पर लाद कर ले जाते परिजन।

Jan-Man Desk
Simdega : Jharkhand के सिमडेगा जिले के बानो प्रखंड स्थित टोनिया कर्रादामईर गांव में सड़क नहीं होने के कारण एंबुलेंस नहीं पहुंची। प्रसव पीड़ा से जूझ रही गुड्डी देवी को चार ग्रामीणों ने खाट पर जंगलों और पहाड़ियों से होते हुए 5 किलोमीटर तक उठाकर पहुंचाया अस्पताल। इस मां की पीड़ा उस ‘विकास मॉडल’ पर सवाल है, जो झारखंड (Jharkhand) के गांवों को अब भी नक्शे से गायब मानता है। झारखंड में मंइयां सम्मान योजना (Maiya Samman Yojana) लागू है, लेकिन क्या सिर्फ किसी लाभुक के खाते में 2500 रुपये दे देना ही मंइयां यानी बेटी-बहन का सम्मान है?
चिनिया कर्रादामईर, झारखंड (Jharkhand) के सिमडेगा जिले के बानो प्रखंड का एक छोटा सा गांव। चारों ओर जंगल, पथरीले रास्ते और पहाड़ियों से घिरा हुआ यह इलाका मानो किसी सरकारी नक्शे से गायब हो गया हो। मोबाइल नेटवर्क आता-जाता रहता है, लेकिन यहां एक चीज जो स्थायी है—वह है सड़क का न होना।
शुक्रवार की सुबह गांव की गुड्डी देवी को अचानक तेज प्रसव पीड़ा हुई। घर में अफरा-तफरी मच गई। गुड्डी की सास और पति ने तुरंत एंबुलेंस को फोन किया, लेकिन सामने से जवाब मिला—“साहब, वहां तक गाड़ी नहीं पहुंच पाएगी।”
खाट बनी जीवन की डोर

अब गुड्डी को अस्पताल तक पहुंचाना था, और विकल्प कुछ नहीं था। गांव के चार पुरुषों ने मिलकर खाट निकाली—वही पुरानी सी लकड़ी की खाट, जो अब सिर्फ बैठने या अनाज सुखाने के काम आती है। लेकिन आज वह खाट एक ज़िंदगी को बचाने का ज़रिया बन गई।
गुड्डी की आंखों में दर्द था, और होंठों पर बार-बार एक ही बात—“बस बच्चा ठीक से हो जाए।” उसका छोटा बेटा, 5 साल का मुन्ना, मां की हालत देखकर चुपचाप एक ओर बैठ गया। शायद वह समझ नहीं पा रहा था, लेकिन उसकी आंखें डरी हुई थीं।
एक रास्ता जो कभी बना ही नहीं
गांव से मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए करीब 5 किलोमीटर का पैदल रास्ता है। वह भी पथरीला, फिसलन भरा और जंगलों से होकर गुजरता है। रास्ते में जगह-जगह कांटों की झाड़ियों और उबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्तों ने खाट पर लेटी गुड्डी को बार-बार झटका दिया।
“अम्मा, थोड़ा और सह लो… बस कुछ दूर और है,”—यह शब्द बार-बार गुड्डी के पति बबलू की ज़ुबान से निकलते रहे।
विकास की दौड़ से छूटा हुआ एक गांव
जब भारत 5G, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल हेल्थ मिशन की बात करता है, तब झारखंड (Jharkhand) के टोनिया कर्रादामईर जैसे गांव खाट एंबुलेंस पर जिंदा हैं। यहां सड़क नहीं है, तो स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचना हर बार एक संघर्ष है।
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि वर्षों से जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई गई है, लेकिन वादे हर बार हवा हो जाते हैं। “हर चुनाव में कहा जाता है कि इस बार सड़क बनेगी… लेकिन अगली बार सिर्फ वादा ही दोहराया जाता है।”
आखिरकार… मां और बच्चा सुरक्षित
करीब दो घंटे के सफर के बाद, गुड्डी को मुख्य सड़क तक लाया गया, जहां इंतज़ार कर रही एंबुलेंस ने उसे सिमडेगा के सदर अस्पताल पहुंचाया। किस्मत अच्छी रही कि डॉक्टर समय रहते इलाज शुरू कर सके और कुछ ही घंटों में गुड्डी ने एक स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया।
बबलू की आंखों में राहत के आंसू थे। उसने कहा, “हमने बच्ची का नाम ‘आशा’ रखा है… शायद अब हमारे गांव में भी बदलाव की कोई किरण आए।”
गुड्डी की यह कहानी केवल एक महिला की नहीं है। यह उस व्यवस्था की चुप्पी की कहानी है, जो देश के कोनों में गूंज रही है। खाट पर लेटी एक मां की यह यात्रा हमें याद दिलाती है कि सड़क सिर्फ कंक्रीट की नहीं होती—वह ज़िंदगी की डोर भी होती है।
जब तक देश के आखिरी गांव तक एंबुलेंस नहीं पहुंचती, तब तक विकास अधूरा है। और गुड्डी जैसी हर मां की पीड़ा तब तक जारी रहेगी, जब तक उसे खाट पर लादना नहीं पड़ेगा।
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