November 22, 2025

Jharkhand BJP की कमान किसके हाथ? OBC चेहरों की रेस और 2029 की रणनीति पर फोकस

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Jharkhand BJP

जातीय समीकरण, सांगठनिक अनुभव और सियासी संदेश: Jharkhand BJP अध्यक्ष की दौड़ का विश्लेषण

Jharkhand BJP President 2025 : झारखंड में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सियासी बिसात एक बार फिर नयी करवट लेने वाली है। 2024 के लोकसभा चुनाव में अपेक्षा से कम प्रदर्शन और आदिवासी वोट बैंक में पैठ की असफलता के बाद अब पार्टी संगठन में आमूलचूल बदलाव की तैयारी में है। केंद्र की ओर से साफ संदेश है – 2029 के विधानसभा चुनाव तक का रोडमैप अब नया नेतृत्व ही तय करेगा।

नया अध्यक्ष: प्रक्रिया और समय-सीमा भाजपा के सांगठनिक संविधान के अनुसार, प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति तब होती है, जब राज्य के 50% मंडल और जिला इकाइयों के चुनाव पूरे हो जाते हैं। झारखंड में यह प्रक्रिया नवंबर 2024 से तेज हुई थी। मार्च 2025 में नई नियुक्ति की अटकलें शुरू हुईं, लेकिन जुलाई 2025 तक प्रक्रिया लंबी खिंच गई। अब अमित शाह के 11 जुलाई के रांची दौरे और बीएल संतोष की बैठकों के बाद अगस्त तक घोषणा की संभावना प्रबल हो गई है।

प्रश्न यह नहीं कि नया अध्यक्ष कौन होगा, बल्कि यह है कि वह भाजपा को 2029 में सत्ता में कैसे वापसी दिलाएगा?

OBC पर फोकस: एक रणनीतिक बदलाव भाजपा की रणनीति इस बार स्पष्ट है – आदिवासी चेहरा पहले से मौजूद (बाबूलाल मरांडी) है, लिहाजा अब गैर-आदिवासी, विशेषकर OBC नेतृत्व की दरकार है। झारखंड की जनसंख्या में OBC करीब 46% हैं, जो पूर्वी झारखंड से लेकर पलामू, कोल्हान, और रांची-बोकारो बेल्ट में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

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2024 की हार का सबक: 2024 के चुनावों में भाजपा की रणनीति – जैसे क्षेत्रीय दलों में घुसपैठ, और परिवारवाद को बढ़ावा देना – अपेक्षित परिणाम नहीं दे सकी। JMM ने आदिवासी अस्मिता, क्षेत्रीय पहचान और आरक्षण जैसे मुद्दों को प्रभावी ढंग से भुनाया। भाजपा अब धनबाद, बोकारो, और हजारीबाग जैसे शहरी-औद्योगिक क्षेत्रों में OBC मतदाताओं को संगठित कर पुनः आधार खड़ा करना चाहती है।

प्रमुख दावेदार : कौन कितना प्रभावशाली?

1. ढुल्लू महतो
पद: धनबाद सांसद
समाज: तेली (OBC)
ताकत: औद्योगिक क्षेत्र में गहरी पैठ, रघुवर दास के करीबी, हालिया लोकसभा जीत
कमजोरी: छवि क्षेत्रीय, संगठन में अनुभव सीमित
संभावना: 🔺 उच्च

2. आदित्य साहू
पद: राज्यसभा सांसद, पूर्व महामंत्री
समाज: सूड़ी (OBC)
ताकत: सांगठनिक अनुभव, साफ-सुथरी छवि, कार्यकर्ताओं में स्वीकार्यता
कमजोरी: क्षेत्रीय प्रभाव सीमित, हाई-प्रोफाइल पहचान नहीं
संभावना: 🔺 उच्च

3. मनीष जायसवाल
पद: हजारीबाग सांसद
समाज: वैश्य (OBC)
ताकत: वैश्य समुदाय में पकड़, दिल्ली में सक्रिय संपर्क
कमजोरी: सांगठनिक पृष्ठभूमि कमजोर, हजारीबाग केंद्रित प्रभाव
संभावना: 🔺 उच्च

4. प्रदीप वर्मा
पद : राज्यसभा सांसद, संगठन महामंत्री
समाज OBC
ताकत: सांगठनिक अनुभव, रणनीतिक सोच
कमजोरी: सांगठनिक चुनाव अधिकारी होना – टकराव की स्थिति
संभावना: 🔻 मध्यम

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5. विद्युत वरण महतो
पद: जमशेदपुर सांसद (तीसरी बार)
समाज: कुड़मी (OBC)
ताकत: तीन बार के सांसद, जमशेदपुर जैसे औद्योगिक और शहरी क्षेत्र से लगातार जीत, कुड़मी समुदाय में मजबूत पकड़, किसी एक गुट से नहीं जुड़े, दिल्ली और रांची – दोनों स्तरों पर स्वीकार्यता।
कमजोरी : अपेक्षाकृत कम मुखर, संगठन में बहुत गहराई से सक्रिय नहीं रहे। जेएमएम की पृष्ठभूमि।
संभावना: 🔺 उच्च (विशेषकर अगर पार्टी कुड़मी समाज को साधने का निर्णय लेती है)


अन्य नाम जो चर्चा में हैं

रघुवर दास : पूर्व मुख्यमंत्री, हाल ही में राज्यपाल पद से त्यागपत्र। उम्रदराज़ और 2019 की हार के बावजूद केंद्रीय नेतृत्व से नजदीकी और सांगठनिक पकड़ बरकरार।

संभावना: 🔻 मध्यम (परंतु ढुल्लू या किसी चहेते को आगे बढ़ाकर अप्रत्यक्ष नियंत्रण संभव)

अर्जुन मुंडा और चंपाई सोरेन दोनों आदिवासी समुदाय से, पूर्व मुख्यमंत्री, लेकिन पार्टी की OBC प्राथमिकता के कारण रेस से बाहर माने जा रहे हैं।

रघुवर दास की सक्रियता: पर्दे के पीछे की सियासत

जनवरी 2025 में ओडिशा के राज्यपाल पद से इस्तीफा देने के बाद रघुवर दास की वापसी केवल औपचारिक नहीं थी, बल्कि रणनीतिक थी। 11 जुलाई को अमित शाह से अकेले मुलाकात और उसके बाद ढुल्लू महतो की सक्रियता ने इस बात को और पुख्ता किया कि या तो वे स्वयं अध्यक्ष बनना चाहते हैं, या फिर ढुल्लू को आगे कर अप्रत्यक्ष नेतृत्व संभालना चाहते हैं।

OBC वोट बैंक को संगठित करना भाजपा का मकसद दिखता है। 2024 में भाजपा की सबसे बड़ी हार यही थी कि वह गैर-आदिवासी वोटों को संगठित नहीं कर सकी। अब पार्टी इसी कमी की भरपाई की कोशिश में है।

सामाजिक समीकरण बनाम संगठनात्मक काबिलियत

भाजपा की रणनीति OBC मतदाताओं को साधने की है, लेकिन सवाल यह भी है – क्या पार्टी केवल जातिगत समीकरणों के आधार पर नेतृत्व चुनेगी, या फिर संगठनात्मक अनुभव और नेतृत्व क्षमता को भी बराबर तवज्जो देगी? आदित्य साहू और प्रदीप वर्मा जैसे नेताओं के पास संगठनात्मक कौशल है, जबकि ढुल्लू और मनीष की जनाधार में मजबूती अधिक है। यह संतुलन ही अगले अध्यक्ष की पसंद तय कर सकता है। अगर पार्टी विद्युत वरण महतो को आगे लाती है, तो यह एक संतुलित, गैर-विवादित और कुड़मी समुदाय को साधने वाला निर्णय माना जाएगा।

भाजपा अब धनबाद, बोकारो, हजारीबाग और जमशेदपुर जैसे शहरी-औद्योगिक क्षेत्रों में OBC मतदाताओं को संगठित कर पुनः आधार खड़ा करना चाहती है। विद्युत वरण महतो जैसे चेहरे पार्टी को कुड़मी समाज की नाराजगी दूर करने में मदद कर सकते हैं।

युवा या महिला नेतृत्व की संभावना?

अब तक की चर्चाओं में किसी महिला या युवा नेता का नाम सामने नहीं आया है। यह भाजपा की रणनीति में एक खाली जगह हो सकती है, विशेषकर तब, जब विपक्ष महिला मतदाताओं और युवा वर्ग को टारगेट कर रहा है। भाजपा के पास युवा और महिला चेहरों की कमी नहीं है, लेकिन क्या भाजपा लीक से हटकर कोई अप्रत्याशित फैसला लेने की स्थिति में है, ये बड़ा सवाल है।

कार्यकर्ताओं की भावना क्या कहती है?

प्रदेश स्तर पर कार्यकर्ताओं की भावनाएं भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। झारखंड के कई जिलों में ढुल्लू महतो को ज़मीन से जुड़ा चेहरा माना जाता है. हालांकि वे अकसर विवादों में भी रहते हैं।
वहीं आदित्य साहू को सांगठनिक समर्पण और सादगी के लिए जाना जाता है। रघुवर दास के लौटने पर कुछ कार्यकर्ता असहज भी हैं, जबकि कुछ उन्हें ‘फिर से नेतृत्व की ज़रूरत’ कह रहे हैं।

क्षेत्रवार प्रभाव और रणनीतिक भूगोल कोल्हान और संथाल परगना – चंपाई और मुंडा की हार ने भाजपा को इस क्षेत्र में दोबारा सोचने पर मजबूर किया है। अब पार्टी गैर-आदिवासी सीटों पर OBC चेहरे से शुरुआत करना चाहती है।

धनबाद-बोकारो बेल्ट – यहां ढुल्लू की पकड़, औद्योगिक श्रमिक वोट बैंक और OBC आधार उन्हें प्रबल बनाता है।

हजारीबाग-रांची : मनीष जायसवाल और प्रदीप वर्मा जैसे नेताओं की स्वीकार्यता है, पर क्षेत्रीय विस्तार सीमित।

धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, हजारीबाग और कोल्हान : इन औद्योगिक और खनन क्षेत्रों में कुड़मी जाति की बहुलता है। विद्युत वरण महतो जैसे चेहरे पार्टी को कुड़मी समाज की नाराजगी दूर करने में मदद कर सकते हैं।

मीडिया और जन-छवि

2029 की राजनीति सिर्फ जातिगत समीकरणों या सांगठनिक ताकत से नहीं चलेगी। मीडिया फ्रेंडली चेहरा, सोशल मीडिया पर संवाद क्षमता, और जन-आकर्षण भी आवश्यक होंगे। इस दृष्टि से आदित्य साहू की छवि सकारात्मक है, जबकि मनीष डिजिटल रूप से सक्रिय माने जाते हैं।

क्या होगा आगे?

अगर पार्टी ढुल्लू महतो को अध्यक्ष बनाती है, तो यह संदेश जाएगा कि भाजपा पर रघुवर दास का सिक्का अभी भी चलता है। अगर आदित्य साहू या मनीष जायसवाल को मौका दिया जाता है, तो यह संतुलन और “नये चेहरों को बढ़ावा” की नीति का संकेत होगा।

झारखंड भाजपा के नए अध्यक्ष की नियुक्ति सिर्फ एक औपचारिक निर्णय नहीं, बल्कि 2029 की सत्ता की तैयारी है। पार्टी इस बार आदिवासी बनाम गैर-आदिवासी के संतुलन को गहराई से समझते हुए OBC नेतृत्व को प्राथमिकता दे रही है। लेकिन इस बार फैसला केवल जाति आधारित नहीं होना चाहिए, बल्कि संगठनात्मक योग्यता, युवा ऊर्जा, महिला भागीदारी और जनसंवाद की क्षमता को भी महत्व देना होगा।

अब देखना है – “क्या दिल्ली की पसंद को कार्यकर्ता स्वीकार करेंगे? और क्या नया चेहरा भाजपा को फिर से जनता की पसंद बना पाएगा?”

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