BJP के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष की दौड़ में इन 6 नामों में कौन सबसे आगे? खट्टर 90% पक्के या सीतारमण बनायेंगी इतिहास?
BJP के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर मंथन तेज है। इस दौड़ में खट्टर, सीतारमण, तावड़े, बंसल, ठाकुर और प्रधान जैसे दिग्गज नेताओं के नाम चर्चा में हैं। पढ़िए कौन बन सकता है भाजपा का अगला चेहरा।
BJP के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष की तलाश: संगठन और सियासत का नया समीकरण

ANAND KUMAR
भारतीय जनता पार्टी (BJP) अपने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति की प्रक्रिया में तेजी से आगे बढ़ रही है, क्योंकि मौजूदा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का कार्यकाल जून 2024 में समाप्त हो चुका है। 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 240 सीटें जीतीं और एनडीए गठबंधन के साथ तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाई। इस बदले हुए सियासी परिदृश्य में, पार्टी संगठनात्मक पुनर्गठन और भविष्य की रणनीति पर ध्यान दे रही है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), जो भाजपा का वैचारिक मार्गदर्शक है, इस चयन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के 75 वर्ष की उम्र में नेताओं के रिटायरमेंट संबंधी बयान ने इस प्रक्रिया को और जटिल बना दिया है, जिसने सियासी गलियारों में नई अटकलों को जन्म दिया है।
मोहन भागवत का रिटायरमेंट बयान और उसका प्रभाव 10 जुलाई 2025 को नागपुर में एक पुस्तक विमोचन समारोह में मोहन भागवत ने कहा, “75 साल की उम्र का मतलब है कि अब रुक जाना चाहिए और दूसरों को मौका देना चाहिए।” यह बयान उन्होंने वरिष्ठ प्रचारक मोरोपंत पिंगले की जीवनी के विमोचन के दौरान दिया।
इस टिप्पणी ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सितंबर 2025 में 75 वर्ष के हो जाएंगे, और भागवत स्वयं भी उसी सप्ताह 75 की उम्र पार करेंगे। विपक्षी दलों, जैसे कांग्रेस के पवन खेड़ा और शमा मोहम्मद ने इस बयान को लेकर भाजपा और मोदी पर कटाक्ष किया, इसे एक संकेत के रूप में पेश किया कि शीर्ष नेतृत्व में बदलाव की तैयारी हो रही है।
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हालांकि, भाजपा और आरएसएस में औपचारिक रूप से 75 वर्ष की उम्र में रिटायरमेंट की कोई नीति नहीं है। वरिष्ठ भाजपा नेता राम माधव ने स्पष्ट किया कि आरएसएस कोई दबाव बनाने वाली शक्ति नहीं है, बल्कि एक सुविधा प्रदाता की भूमिका निभाता है। भागवत का यह बयान सामान्य सामाजिक टिप्पणी हो सकता है, लेकिन इसे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन के लिए एक संदेश के रूप में भी देखा जा रहा है। यह बयान न केवल संगठन में उत्तराधिकार की चर्चा को तेज करता है, बल्कि नए अध्यक्ष के चयन में आरएसएस की प्राथमिकताओं को भी रेखांकित करता है, जैसे कि संगठन आधारित नेतृत्व, कैडर से संवाद, और आंतरिक लोकतंत्र की बहाली।
प्रमुख दावेदार और विश्लेषण
भाजपा के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष की दौड़ में कई नाम सामने आ रहे हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख नेताओं पर चर्चा नीचे दी गई है:
🔶 मनोहर लाल खट्टर
पृष्ठभूमि: पूर्व हरियाणा मुख्यमंत्री और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री (आवास, शहरी कार्य और ऊर्जा)।
मजबूती:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के बेहद करीबी माने जाते हैं।
आरएसएस से 1977 से जुड़े हैं, प्रचारक के रूप में लंबा अनुभव।
हरियाणा में पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है।
ज़ी न्यूज़ और न्यूज़18 हिंदी जैसे मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने दावा किया है कि “उनकी नियुक्ति 90% तय मानी जा रही है।”
चुनौतियां:
वह गैर-जाट समुदाय से आते हैं, जो हरियाणा की जातीय राजनीति में विरोध के स्वर को जन्म दे सकता है।
साथ ही, केंद्र सरकार में उनकी मंत्रालयी जिम्मेदारियां समय प्रबंधन को चुनौती दे सकती हैं।
🔶 निर्मला सीतारमण
पृष्ठभूमि: वर्तमान में केंद्रीय वित्त मंत्री और कॉरपोरेट मामलों की मंत्री।
मजबूती:
अगर वह अध्यक्ष बनती हैं तो यह भाजपा की पहली महिला अध्यक्ष होंगी – एक ऐतिहासिक निर्णय।
2024 चुनावों में महिला मतदाताओं की बड़ी भूमिका को देखते हुए आरएसएस और भाजपा नेतृत्व महिला नेतृत्व को प्राथमिकता देने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
उनकी वैश्विक छवि और प्रशासनिक दक्षता उन्हें एक सशक्त उम्मीदवार बनाती है।
चुनौतियां:
संगठनात्मक राजनीति में उनका अनुभव सीमित है।
वित्त मंत्रालय जैसी चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी के चलते उनके समय की उपलब्धता सीमित हो सकती है।
🔶 विनोद तावड़े
पृष्ठभूमि: महाराष्ट्र से भाजपा के वरिष्ठ नेता, वर्तमान में राष्ट्रीय महासचिव।
मजबूती:
पार्टी के जमीनी संगठन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका।
मराठा समुदाय से होने के कारण पश्चिम भारत में सामाजिक समीकरण साध सकते हैं।
दैनिक भास्कर सहित कई राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने उनके नाम को संभावित बताया है।
चुनौतियां:
राष्ट्रीय पहचान सीमित है।
महाराष्ट्र में हालिया राजनीतिक उठापटक में उनका असर निर्णायक नहीं रहा।
🔶 सुनील बंसल
पृष्ठभूमि: राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश में भाजपा संगठन के प्रमुख रणनीतिकार।
मजबूती:
यूपी जैसे बड़े राज्य में भाजपा की जीत में अहम भूमिका।
आरएसएस से निकट संबंध और ज़मीनी राजनीति की गहरी समझ।
रणनीतिक प्लानिंग और बूथ स्तर तक पकड़ के लिए जाने जाते हैं।
चुनौतियां:
अपेक्षाकृत कम चर्चित चेहरा।
मुख्य रूप से पर्दे के पीछे रणनीति बनाने वाले नेता माने जाते हैं।
🔶 अनुराग ठाकुर
पृष्ठभूमि: पूर्व केंद्रीय मंत्री, हिमाचल प्रदेश से सांसद।
मजबूती:
युवा, ऊर्जावान और धारदार वक्ता के रूप में पहचान।
हिमाचल में संगठन को मज़बूत करने में सक्रिय भूमिका।
आरएसएस से घनिष्ठ संबंध।
चुनौतियां:
खट्टर जैसे अन्य उत्तर भारतीय नेताओं की दावेदारी से क्षेत्रीय असंतुलन की आशंका।
मंत्रिमंडल से बाहर होने के बाद उनके प्रभाव को लेकर सवाल उठे हैं।
🔶 धर्मेंद्र प्रधान
पृष्ठभूमि: केंद्रीय शिक्षा मंत्री, ओडिशा से भाजपा सांसद।
मजबूती:
पूर्वी भारत में पार्टी के विस्तार में प्रमुख भूमिका।
ओडिशा जैसे राज्य में भाजपा की साख मजबूत करने में योगदान।
संगठनात्मक और प्रशासनिक दोनों स्तरों पर अनुभव।
चुनौतियां:
शिक्षा मंत्रालय की भारी ज़िम्मेदारियां।
राष्ट्रीय स्तर पर संगठनात्मक पहचान तुलनात्मक रूप से सीमित।
प्रमुख समाचारों का विश्लेषण
- हिंदुस्तान टाइम्स (15 जुलाई 2025): खट्टर को सबसे मजबूत दावेदार बताया गया, लेकिन क्षेत्रीय और जातीय संतुलन की चर्चा भी।
- न्यूज़18 हिंदी (12 जुलाई 2025): खट्टर की नियुक्ति को “90% पक्का” बताया, लेकिन सीतारमण का नाम महिला नेतृत्व के लिए चर्चा में।
- इंडिया टुडे (13 जुलाई 2025): भागवत के बयान को भाजपा के लिए एक संदेश के रूप में देखा गया, जिसमें संगठन आधारित नेतृत्व पर जोर दिया गया।
- अमर उजाला (13 जुलाई 2025): नड्डा के कार्यकाल के बाद नए अध्यक्ष की नियुक्ति में देरी को आरएसएस और भाजपा के बीच गहन विचार-विमर्श से जोड़ा गया।
- मनीकंट्रोल (9 जुलाई 2025): आरएसएस ने नए अध्यक्ष के लिए “समावेशी, सुलभ, और जमीनी स्तर के आयोजक” जैसे गुणों पर जोर दिया।
- डेक्कन क्रॉनिकल (8 जुलाई 2025): खट्टर जैसे संगठन से जुड़े नेता को प्राथमिकता, लेकिन “डार्क हॉर्स” की संभावना से इंकार नहीं।
- एक्स पोस्ट्स: भागवत के बयान को लेकर विपक्ष ने इसे मोदी के लिए संकेत बताया, जबकि कुछ यूजर्स ने भाजपा-आरएसएस के बीच मतभेद की अटकलें लगाईं।
- Jharkhand BJP की कमान किसके हाथ? OBC चेहरों की रेस और 2029 की रणनीति पर फोकस
भाजपा के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन एक रणनीतिक कदम है, जो 2029 के लोकसभा चुनावों और क्षेत्रीय चुनावों के लिए पार्टी की दिशा तय करेगा। मोहन भागवत का 75 वर्ष की उम्र वाला बयान इस प्रक्रिया को और जटिल बनाता है, क्योंकि यह शीर्ष नेतृत्व में उत्तराधिकार की चर्चा को हवा देता है। मेरे विश्लेषण के आधार पर, निम्नलिखित बिंदु उभरकर सामने आते हैं:
- संगठनात्मक नेतृत्व पर जोर : भागवत का बयान और आरएसएस की प्राथमिकताएं दर्शाती हैं कि नया अध्यक्ष ऐसा होना चाहिए जो कैडर से संवाद करे, आंतरिक लोकतंत्र को मजबूत करे, और व्यक्तिगत प्रभुत्व से ऊपर उठकर संगठन को प्राथमिकता दे।
- क्षेत्रीय और सामाजिक संतुलन : खट्टर और ठाकुर जैसे उत्तर भारतीय नेताओं के नाम प्रमुख हैं, लेकिन सीतारमण (दक्षिण भारत) और प्रधान (पूर्वी भारत) जैसे नाम क्षेत्रीय संतुलन की जरूरत को रेखांकित करते हैं।
- महिला नेतृत्व की संभावना : सीतारमण का नाम ऐतिहासिक बदलाव ला सकता है, खासकर महिला मतदाताओं की बढ़ती भूमिका को देखते हुए।
- आरएसएस का प्रभाव : भागवत का बयान और आरएसएस की सक्रियता यह संकेत देती है कि नया अध्यक्ष संगठन और वैचारिक दृष्टिकोण में संतुलन बनाएगा।
- मोदी-शाह की भूमिका : हालांकि भागवत का बयान मोदी के लिए संकेत माना जा रहा है, लेकिन पार्टी सूत्रों का मानना है कि मोदी अभी भी वैचारिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी हैं, और नया अध्यक्ष उनकी छत्रछाया में काम करेगा।
निष्कर्ष
भाजपा के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन संगठन, सियासत, और वैचारिक दृष्टिकोण का एक जटिल समीकरण है। मनोहर लाल खट्टर की नियुक्ति सबसे संभावित लगती है, लेकिन निर्मला सीतारमण, विनोद तावड़े, सुनील बंसल, अनुराग ठाकुर, और धर्मेंद्र प्रधान जैसे नाम भी दौड़ में हैं। मोहन भागवत का 75 वर्ष की उम्र वाला बयान इस प्रक्रिया को नई दिशा दे रहा है, जो न केवल अध्यक्ष के चयन को बल्कि पार्टी के दीर्घकालिक नेतृत्व और उत्तराधिकार की योजना को भी प्रभावित करेगा। यह नियुक्ति न केवल भाजपा के भविष्य को आकार देगी, बल्कि भारत की राष्ट्रीय राजनीति पर भी गहरा प्रभाव डालेगी।
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स, न्यूज़18 हिंदी, इंडिया टुडे, अमर उजाला, मनीकंट्रोल, डेक्कन क्रॉनिकल, ज़ी न्यूज़, लाइवमिंट, और एक्स पर संबंधित पोस्ट्स।
