Shibu Soren की गूंज और नगड़ी का संघर्ष : हरवा तो जोतो न यार! …जब अपनी ही सरकार के खिलाफ खड़े हो गये थे गुरुजी
रांची के नगड़ी में रिम्स-2 के निर्माण को लेकर फिर से जमीन की लड़ाई। किसानों का विरोध तेज़, सरकार का दावा – बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए ज़रूरी। पर सवाल – खेती की उपजाऊ जमीन क्यों छीनी जाए? क्या गुरुजी Shibu Soren की गूंज सत्ता तक पहुंचेगी?
नगड़ी में एक बार फिर जमीन की लड़ाई शुरू हो चुकी है। किसानों का कहना है कि अस्पताल चाहिए, लेकिन खेती की उपजाऊ जमीन नहीं छीनी जानी चाहिए। 2012 के आंदोलन में Shibu Soren की गूंज आज भी मिट्टी में बसती है, पर इस बार गुरुजी नहीं हैं।

आनंद कुमार
Tribute to Shibu Soren : रांची जिले के नगड़ी में एक बार फिर जमीन की लड़ाई शुरु हो चुकी है। इस बार विस्फोटक मुद्दा है रिम्स-2 का निर्माण। सरकार का कहना है कि यहां अस्पताल बनेगा ताकि झारखंड की जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें। लेकिन किसानों का सवाल है – “हमारी उपजाऊ जमीन पर क्यों? आखिर स्मार्ट सिटी और अन्य जगहों पर उपलब्ध सैकड़ों एकड़ जमीन का इस्तेमाल क्यों नहीं हो रहा?”
नगड़ी में खेती करके जीवन गुजारने वाले ग्रामीणों ने जब यह महसूस किया कि उनकी रोज़ी-रोटी पर संकट मंडरा रहा है, तो वे फिर से सड़कों पर उतर आए। आंदोलन की तैयारी है। विरोध की गूंज तेज़ है। पर फर्क यह है कि इस बार गुरुजी शिबू सोरेन नहीं हैं – जिन्होंने पिछले आंदोलन को ताकत दी थी।
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गुरुजी का नगड़ी आंदोलन और 2012 की जीत
साल 2012 में भी यहां की धरती पर ऐसा ही संघर्ष हुआ था। तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की सरकार ने नगड़ी की 227 एकड़ उपजाऊ खेतीहर जमीन पर कब्जा कर ट्रिपल आईटी, आईआईएम और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी जैसी संस्थाएं बनाने का फैसला लिया था।
लगभग 600 आदिवासी परिवारों की जीवनरेखा इस जमीन से जुड़ी हुई थी। सरकार ने पुलिस उतारी, लाठीचार्ज हुआ, मुकदमे दर्ज हुए लेकिन ग्रामीण झुके नहीं। धीरे-धीरे आंदोलन ने तूल पकड़ा।
15 जुलाई 2012। बारिश से भीगी शाम और नगड़ी चौक पर उमड़ा जनसमूह। मंच पर पहुंचे दिशोम गुरु शिबू सोरेन। उनके आते ही भीगी हवा में गूंज उठा – “दिशोम गुरु ज़िंदाबाद, जय झारखंड!”
गुरुजी ने उस भीड़ से कहा –
“मैं सरकार में भी हूं और सरकार के खिलाफ भी हूं। क्योंकि यह जनता की जमीन का सवाल है। जब जनता ही नहीं रहेगी तो सरकार का क्या अस्तित्व?”
और फिर जो वाक्य उनकी जुबान से निकला, वह नगड़ी की मिट्टी में हमेशा के लिए बस गया –
“हरवा तो जोतो न यार… कैसे बचेगा।”
यह कोई नारा नहीं था, यह झारखंड की आत्मा की पुकार थी। इस वाक्य ने आंदोलन में नयी जान डाल दी। जनता और मजबूती से खड़ी हो गई। नतीजा यह हुआ कि सरकार को झुकना पड़ा। आईआईएम और ट्रिपल आईटी का सपना अधूरा रह गया। हालांकि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का निर्माण हुआ, लेकिन किसानों की खेती बची रही। यह जीत ग्रामीणों के लिए किसी जंग की तरह थी।
आज वही नगड़ी, लेकिन बदले हालात
समय बीत गया। वह आवाज अब इस धरती पर गूंजती नहीं जिसे लोग “गुरुजी” कहते थे।
आज नगड़ी फिर सवाल कर रहा है –
“हमारी जमीन क्यों छीनी जा रही है?”
फर्क बस इतना है कि आज झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हैं, यानी गुरुजी के बेटे। पर उनकी ही सरकार नगड़ी की उसी भूमि पर रिम्स-2 का निर्माण करना चाहती है। किसान कहते हैं – “हमें अस्पताल से परेशानी नहीं, हमें अपनी खेती से बेदखल क्यों किया जा रहा है?”
सरकार की मशीनरी ने यहां तार-बाड़ खींच दी है, किसानों को रोक दिया है। किसान कह रहे हैं न तो अधिग्रहण की कोई प्रक्रिया हुई, न नोटिस मिला। फिर यह कब्जा किस आधार पर है?
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चंपाई की एंट्री और ‘हल जोतो, रोपा रोपो’ आंदोलन
और अब इस लड़ाई में नया मोड़ है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, कभी गुरुजी के करीबी और आज भाजपा नेता चंपाई सोरेन सामने आए हैं। उन्होंने घोषणा की है कि वे 24 अगस्त को नगड़ी में किसानों के ‘हल जोतो, रोपा रोपो’ आंदोलन में शामिल होंगे और खुद अपनी जोड़ी बैलों के साथ जमीन पर हल चलाएंगे।

चंपाई का कहना है –
- उन्हें अस्पताल बनाने से आपत्ति नहीं, लेकिन खेतीयोग्य जमीन छीनने से है।
- जब स्मार्ट सिटी में सौ-दो सौ एकड़ जमीन खाली पड़ी है, तो नगड़ी की जमीन पर कब्जा करने की क्या मजबूरी?
- सीएनटी एक्ट, भूमि अधिग्रहण कानून 2013 और ग्राम सभा की सहमति – इन सब की अनदेखी क्यों हो रही है?
उनका सवाल गूंजता है – “क्या इसी दिन को देखने के लिए अलग झारखंड राज्य बनाया गया था?”
लेकिन सबसे बड़ा फर्क : गुरुजी नहीं हैं…
इन सबके बीच सबसे बड़ी कमी खलती है गुरुजी की अनुपस्थिति।
आज भी ग्रामीण कहते हैं कि अगर शिबू सोरेन जिंदा होते तो वे जरूर अपनी ही सरकार के खिलाफ खड़े होकर कहते –
“हरवा तो जोतो न यार… कैसे बचेगा।”
लेकिन अब वे नहीं हैं।
उनकी जगह चंपाई हल चलाएंगे।
और सवाल यह है – उनकी आवाज का असर कितना होगा? क्या सत्ता इसे सुनेगी?
क्योंकि विपक्ष में उठी आवाज अक्सर सत्ता की दीवारों से टकराकर लौट आती है।
गुरुजी की गूंज क्या सत्ता तक पहुंचेगी?
नगड़ी की यह जंग आज भी उतनी ही जीवंत है जितनी 2012 में थी। फर्क सिर्फ इतना है – अब यह जंग गुरुजी की मौजूदगी की छांव से वंचित है।
लेकिन उनकी गूंज अब भी मिट्टी में है।
उनके कहे शब्द अब भी किसानों की सांसों में हैं।
उनके सवाल अब भी सत्ता से पूछ रहे हैं –
“हरवा तो जोतो न यार… कैसे बचेगा?”
सवाल है –
क्या यह गूंज सत्ता के कानों तक पहुंचेगी?
या फिर यह भी राजनीति की भीड़ में गुम हो जाएगी?
क्या नगड़ी की मिट्टी फिर से राजनीति की प्रयोगशाला बनकर रह जाएगी?
- ✊ अपनी राय दें—क्या सरकार को रिम्स-2 के लिए दूसरी जमीन खोजनी चाहिए?
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