November 22, 2025

गुरुजी Shibu Soren की राज्यसभा सीट पर क्या होगा? उपचुनाव या इंतजार? JMM से कौन बनेगा उम्मीदवार!

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राज्यसभा में गुरुजी शिबू सोरेन की खाली हुई सीट को लेकर सस्पेंस बरकरार है। क्या झारखंड में उपचुनाव होगा या फिर यह सीट खाली ही रहेगी? झामुमो (JMM) की ओर से किसे उम्मीदवार बनाया जाएगा? जानिए इस बड़ी राजनीतिक हलचल से जुड़ी पूरी जानकारी और संभावित नाम।

गुरुजी की सीट पर उपचुनाव होगा या नहीं जानिए नियम और समीकरण (1)

JMM News : घाटशिला सीट पर उपचुनाव, और क्या रामदास सोरेन के बेटे सोमेश को मिलेगा मंत्री पद?

JMM

आनंद कुमार
झारखंड की राजनीति इस वक्त बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री और JMM के संस्थापक शिबू सोरेन (गुरुजी) तथा राज्य के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन के निधन ने न सिर्फ राजनीतिक हलचल पैदा की है, बल्कि सत्ता संतुलन और रणनीतियों को भी नया मोड़ दे दिया है। एक तरफ गुरुजी के निधन के बाद राज्यसभा की एक सीट खाली हो गई, दूसरी तरफ विधानसभा में भी एक सीट खाली हो गई। गुरुजी और रामदास सोरेन दोनों जेएमएम के ही नेता थे, इसलिए झामुमो को इन दोनों कद्दावर नेताओं की जगह योग्य उम्मीदवारों का चयन करने की चुनौती है।

शिबू सोरेन की राज्यसभा सीट पर चुनाव में संशय

गुरुजी का निधन 4 अगस्त को हुआ। उनका कार्यकाल 9 अप्रैल 2026 तक था, यानी अब सिर्फ सात से आठ महीने का समय बचा है। ऐसे में बड़ा सवाल है—क्या इस सीट पर उपचुनाव होगा? नियम कहता है कि अगर राज्यसभा की खाली हुई सीट का शेष कार्यकाल एक साल या उससे ज्यादा है, तो उपचुनाव अनिवार्य है। अगर एक साल से कम है, तो चुनाव आयोग उपचुनाव कराने के लिए बाध्य नहीं है। शिबू सोरेन की सीट के मामले में यह अवधि एक साल से कम है। इसलिए संभावना यही है कि यह सीट अगले नियमित चुनाव (अप्रैल-जून 2026) तक खाली रहेगी। हालांकि राजनीतिक परिस्थितियां बदलें तो आयोग फैसला ले सकता है, लेकिन मौजूदा हालात में यह संभावना बेहद कम मानी जा रही है।

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2026 में दो राज्यसभा सीटों पर मुकाबला

अगले साल अप्रैल में शिबू सोरेन की सीट का नियमित चुनाव होगा। इसके बाद जून में भाजपा के दीपक प्रकाश का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। यानी दोनों सीटों पर एक साथ चुनाव होंगे। मौजूदा विधानसभा समीकरण साफ़ है। बिहार के चुनाव के साथ ही रामदास सोरेन के निधन के बाद खाली हुई घाटशिला सीट पर चुनाव होने की उम्मीद है। फिलहाल झामुमो, कांग्रेस और राजद गठबंधन के पास 55 विधायक हैं, जबकि भाजपा के पास 21 सीटें हैं। एनडीए सहयोगियों को मिलाकर विपक्षी ताकत 25 तक जाती है। राज्यसभा में जीत के लिए 28 वोट चाहिए। ऐसे में भाजपा के लिए यह संख्या जुटाना लगभग नामुमकिन है। इसका मतलब है कि दोनों सीटें सत्तारूढ़ गठबंधन के खाते में जाएंगी—एक झामुमो को और दूसरी कांग्रेस को।

झामुमो के भीतर इन नामों की चर्चा

अब सबसे बड़ी बहस झामुमो के कोटे की सीट को लेकर है। गुरुजी के रूप में संसद में सोरेन परिवार का प्रतिनिधित्व था. इस लिहाज से यह भी एक सोच हो सकती है कि परिवार का प्रतिनिधित्व संसद में रहे। इस लिहाज से सोरेन परिवार से भी कोई हो सकता है। हेमंत सोरेन तो मुख्यमंत्री ही हैं। उनकी पत्नी कल्पना सोरन और छोटे भाई बसंत सोरेन भी विधायक हैं। ऐसे में पार्टी में परिवार का कोई ऐसा सदस्य नहीं है, जो राज्यसभा में जा सके।

क्या सीता सोरेन की वापसी होगी

हां, हेमंत सोरेन की भाभी और दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन, जो फिलहाल भाजपा में हैं, उनकी एक संभावना बन सकती है। सीता सोरेन भाजपा में जाकर लोकसभा और विधानसभा का चुनाव हार चुकी हैं। अब 2029 तक कोई चुनाव भी नहीं है। गुरुजी के निधन के बाद नेमरा में सीता सोरेन और उनकी बेटियां भी थीं। बेटियों ने भावनात्मक पोस्ट भी सोशल मीडिया पर डाली थी। ऐसे में संभावना है कि सीता सोरेन की झामुमो में वापसी हो जाये। क्योंकि अब हेमंत सोरेन ही पार्टी और परिवार के मुखिया है और वे भी चाहेंगे कि परिवार और पार्टी एकजुट रहे।

कुणाल की चर्चा सबसे ज्यादा

अगर सीता सोरेन की वापसी नहीं होती है, तो कुणाल षाडंगी का नाम प्रमुखता से आ रहा है। कुणाल 2014 में बहरागोड़ा से जेएमएम के विधायक हुआ करते थे, लेकिन 2019 के चुनाव में वे बीजेपी में शामिल हो गये, लेकिन उनका फैसला गलत साबित हो गया. और वे चुनाव हार गये। 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले कुणाल ने भाजपा छोड़ दी। 2024 के विधानसभा चुनाव के पहले हेमंत सोरेन से मुलाकात के बाद कुणाल जेए्मएम में लौट आये। हालांकि उन्हें टिकट नहीं मिला लेकिन हेमंत सोरेन से उनकी नजदीकी के कारण यह चर्चा है कि उन्हें राज्यसभा भेजा जा सकता है।

पूर्व मंत्री मिथिलेश भी हैं विकल्प
कुणाल के अलावा पूर्व मंत्री मिथिलेश ठाकुर के नाम पर भी पार्टी विचार कर सकती है। मिथिलेश ठाकुर लंबे समय से झामुमो के निष्ठावान नेता हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में मिथिलेश ठाकुर गढ़वा से भाजपा के सत्येंद्र नाथ तिवारी को हराकर पहली बार विधायक बने और हेमंत सोरेन कैबिनेट में शामिल हुए। वे चंपाई सोरेन सरकार में भी मंत्री रहे। अपने कार्यकाल में उन्होंने गढ़वा का जो विकास किया, उसके लिए उनकी काफी तारीफ होती है। लेकिन 2024 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। मिथिलेश ठाकुर को शिबू सोरेन का करीबी सहयोगी माना जाता है। गुरुजी उन्हें काफी मानते थे। मंत्री के रूप में उनके अनुभव, पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा और संगठनात्मक क्षमता के कारण पार्टी उन्हें राज्यसभा में भेजकर उनकी सेवाओं का राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग कर सकती है।

विनोद पांडे रहे हैं वफादार सिपाही
झामुमो के केंद्रीय महासचिव और प्रवक्ता विनोद पांडे पर भी पार्टी विचार कर सकती है। विनोद पांडे लंबे समय से शिबू सोरेन के करीबी सहयोगी रहे हैं। वे अक्सर मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर झामुमो के पक्ष को मजबूती से रखते हैं और उन्होंने मांग की है कि झारखंड विधानसभा के मानसून सत्र में दिशोम गुरु शिबू सोरेन को भारत रत्न दिये जाने का प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा जाये। इसके अलावा पार्टी के एक अन्य महासचिव और प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य भी पार्टी के सीनियर नेता हैं, लेकिन वे बंगाली हैं और जेएमएम की एक और राज्यसभा सांसद महुआ माजी भी बंगाली हैं। इससे सुप्रियो की दावेदारी कमजोर हो सकती है।

कांग्रेस की रणनीति

साल 2024 में धीरज साहू का कार्यकाल खत्म होने के बाद उनकी सीट झामुमो के सरफराज अहमद को दे दी गयी थी, क्योंकि सरफराज अहमद ने गांडेय सीट खाली की थी, जिस पर हुए उपचुनाव में जीत दर्ज कर कल्पना सोरेन पहली बार विधायक बनीं थीं। तो दो सीटों पर चुनाव होगा तो एक सीट कांग्रेस को मिलनी तय है। अब इस सीट से धीरज साहू की फिर से राज्यसभा जायेंगे या कोई और ये तो वक्त बतायेगा। वैसे कांग्रेस में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय और प्रदेश अध्यक्ष केशव महतो कमलेश समेत कई दावेदार हैं। लेकिन धीरज साहू कई कारणों से भारी पड़ते हैं।

मंत्रिमंडल में रिक्त पद पर नई चर्चा

इधर घाटशिला से विधायक रहे और हेमंत सरकार में शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन के निधन के बाद उनकी जगह किसे मंत्री बनाया जायेगा, इसको लेकर अटकलें चल रही हैं। दोस्तो आपको याद होगा कि हाझारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता और झारखंड सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण व निबंधन मंत्री जी हुसैन अंसारी का निधन 3 अक्टूबर 2020 को रांची के मेदांता अस्पताल में हो गया था। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने हाजी हुसैन अंसारी के बेटे हफीजुल हसन को 5 फरवरी 2021 को अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया। उस समय हफीजुल झारखंड विधानसभा के सदस्य नहीं थे। बाद में वे मधुपुर विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़े और जीते।

इसी तरह डुमरी के विधायक और झारखंड के शिक्षा, साक्षरता और उत्पाद मंत्री टाइगर जगरनाथ महतो का निधन 6 अप्रैल 2023 को चेन्नई के एक अस्पताल में हो गया था। जगरनाथ महतो के निधन के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनकी पत्नी बेबी देवी को 3 जुलाई 2023 को अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया। बेबी देवी को भी बिना चुनाव लड़े मंत्री बनाया गया था। बाद में डुमरी में उपचुनाव हुआ और जेमएम ने बेबी देवी को टिकट दिया और बेबी देवी जीतीं लेकिन चुनाव उन्होंने मंत्री रहते ही लड़ा था।

इसको देखते हुए संभावना जतायी जा रही है कि रामदास सोरेन के निधन के बाद उनके बड़े बेटे सोमेश सोरेन को मंत्री बनाया जा सकता है। सोमेश सामाजिक रूप से काफी सक्रिय हैं और स्थानीय स्तर पर लोकप्रिय भी हैं। पार्टी सूत्रों का मानना है कि सोमेश को भी पहले मंत्री बनाया जायेगा और वे मंत्री पद पर रहते ही उपचुनाव लड़ेंगे। वैसे कुछ लोग ईचागढ़ की विधायक सविता महतो को भी मंत्री बनाये जाने की चर्चा कर रहे हैं, लेकिन सरायकेला के राजनगर से लेकर पूरे पूर्वी सिंहभूम जिले में संथाल आदिवासियों को प्रतिनिधित्व देने के लिए सोमेश सोरेन को ही मंत्री बनाये जाने की उम्मीद ज्यादा है। क्योंकि इस इलाके में संथालों के बड़े नेता चंपाई सोरेन के भाजपा में चले जाने के बाद रामदास सोरेन को मंत्री बनाया गया था। कोल्हान से हो आदिवासी समुदाय से आनेवाले दीपक बिरुआ पहले से ही मंत्री हैं, इसलिए भी रामदास सोरेन की जगह उनके बेटे को मिलेगी, इसकी प्रबल संभावना है।

तो अगर शिबू सोरेन की सीट पर उपचुनाव नहीं होता है, तो अभी उम्मीदवार का नाम तय करने के लिए वक्त है। झामुमो में तो ज्यादा मगजमारी नहीं है, क्योंकि वहां हेमंत सोरेन को ही फैसला लेना है, लेकिन कांग्रेस में जो दिल्ली दरबार में गोटी सेट कर पायेगा उसे ही टिकट मिलेगा, और कांग्रेस चूंकि राष्ट्रीय पार्टी है, तो उसे बहुत से समीकऱणों को भी देखना पड़ेगा।

फिलहाल तस्वीर साफ़ है, राज्यसभा की दोनों सीटें गठबंधन के हिस्से में जाएंगी और कैबिनेट में सोमेश सोरेन की एंट्री तय मानी जा रही है। लेकिन आने वाले महीने झारखंड की राजनीति में सिर्फ सत्ता संतुलन ही नहीं, बल्कि परिवार और संगठन के बीच के समीकरणों की भी बड़ी परीक्षा लेंगे।

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