November 22, 2025

Operation Sindoor पर थरूर-तिवारी की चुप्पी : कांग्रेस की रणनीति या आत्म-संकोच?”

0

operation sindoor पर कांग्रेस नेता शशि थरूर और मनीष तिवारी को संसद में बोलने से रोके जाने के बाद पार्टी के भीतर उठे सवाल। क्या कांग्रेस पार्टी अपनी आलोचनात्मक आवाजों से घबरा गई है?

odi
Operation Sindoor

Jan-Man ki Baat
संसद के मौजूदा मानसून सत्र में “ऑपरेशन सिंदूर” (Operation Sindoor) पर बहस के दौरान कांग्रेस पार्टी का रवैया न केवल संशय पैदा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि पार्टी अभी भी रणनीतिक स्पष्टता के संकट से गुजर रही है।

शशि थरूर और मनीष तिवारी—दो ऐसे नेता हैं जो पार्टी के भीतर “बुद्धिजीवी” तबके का प्रतिनिधित्व करते हैं और देश-विदेश में अपनी विश्लेषणात्मक क्षमता और तथ्यपरक बयानों के लिए पहचाने जाते हैं। लेकिन इन दोनों को संसद में बोलने का मौका नहीं दिया गया। दोनों नेता हाल ही में सरकार की विदेश नीति विशेषकर ऑपरेशन सिंदूर जैसे सुरक्षा-उपक्रमों पर सकारात्मक टिप्पणियां कर चुके थे। कांग्रेस नेतृत्व को आशंका थी कि ये नेता सदन में भी सरकार के पक्ष में बोल सकते हैं, जिससे पार्टी की लाइन कमजोर पड़ सकती है।

क्या कांग्रेस “तटस्थता” से डर रही है?

पार्टी ने इस बार संसद में ऐसे नेताओं को प्राथमिकता दी जो “पूरी तरह पार्टी लाइन” पर खरे उतरते हों। यानी ऐसा नेतृत्व जो सरकार के खिलाफ तीखे हमले बोले, भले ही उसमें रणनीतिक संतुलन की कमी क्यों न हो। यह वही कांग्रेस है जो कभी तर्क और विवेक पर आधारित विपक्षी भूमिका निभाने का दावा करती थी। आज वह “नॉन-लाइनर” नेताओं को साइलेंट मोड में भेज रही है।

Operation Sindoor

शशि थरूर और मनीष तिवारी की ‘सहमति’ अब ‘संदेह’ बन चुकी है

दोनों नेता हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर को लेकर विदेशों में भारत का पक्ष रखने वाले डेलिगेशन का हिस्सा थे। थरूर ने पांच देशों के दौरे पर भारत सरकार की ओर से नेतृत्व किया। उन्होंने इसे “राष्ट्रीय सम्मान” माना और सोशल मीडिया पर लिखा—“जब राष्ट्रीय हित की बात होगी, तब मैं पीछे नहीं हटूंगा।” यही बात पार्टी को नागवार गुज़री।

मनीष तिवारी ने अपने प्रत्यक्ष विरोध के बजाय “भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं…” जैसे गीत की पंक्तियों से पार्टी नेतृत्व को संदेश देने की कोशिश की। उनके ट्वीट का लहजा कहता है कि विरोध मौन है, लेकिन तल्ख है।

राजद विधायक भाई वीरेंद्र का Viral Audio विवाद : पंचायत सचिव से तीखी बहस के बाद दी सफाई, सचिव ने SC-ST थाने में दी शिकायत

‘मोदी पहले, देश बाद में’ — खड़गे का इशारा और भीतर की बेचैनी

जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने नाम लिए बिना कहा कि “कुछ लोगों के लिए मोदी पहले हैं और देश बाद में”, तो सियासी हलकों में यह थरूर पर तंज माना गया। लेकिन असल सवाल यह है—क्या राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मामलों में “केंद्र बनाम विपक्ष” का विमर्श तर्कसंगत है?

अगर देश के सुरक्षा अभियान को लेकर विपक्षी नेता भी सराहना करते हैं, तो क्या वह राष्ट्रहित के खिलाफ है? क्या कांग्रेस ऐसे नेताओं को बहस से बाहर रखकर अपनी रणनीतिक चौकसी दिखा रही है या आत्म-संकोच?

कांग्रेस की ‘लाइन’ अब रेखांकित हो चुकी है

  • पार्टी अब उन्हीं को मंच दे रही है जो अति-विरोध की मुद्रा में हों।
  • रणनीति है—सरकार की आलोचना करो, चाहे थ्योरी कितनी भी खोखली क्यों न हो।
  • “अनबोले” नेताओं की चुप्पी का असर दीर्घकालिक होगा—पार्टी के अंदर फूट की दरार और गहरी हो सकती है।

यह चुप्पी राजनीतिक संकेत है

शशि थरूर और मनीष तिवारी की चुप्पी एक निजी शिकायत भर नहीं है। यह कांग्रेस के अंदर विचारधारा, स्वतंत्र राय और रणनीतिक संतुलन की गिरती हैसियत की ओर इशारा है। पार्टी को तय करना होगा—क्या वह हर मुद्दे को “सरकार बनाम विपक्ष” के चश्मे से देखेगी, या राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे विषयों पर व्यापक दृष्टिकोण अपनाएगी।

वरना यह चुप्पी आने वाले दिनों में पार्टी के लिए शोर बनकर लौट सकती है।

Operation Mahadev : पहलगाम हमला करने वाले आतंकी हाशिम मूसा समेत 3 ढेर, लिडवास में सेना का बड़ा एक्शन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *