November 22, 2025

MGM अस्पताल हादसा : क्या CM को गलत जानकारी देकर गुमराह किया गया? हेमंत को हटाना पड़ा ट्वीट!

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एमजीएम हादसे ने कई सवालों को जन्म दिया है।

Jamshedpur : जमशेदपुर के एमजीएम अस्पताल में शनिवार को जो हादसा हुआ, वह केवल एक दुर्घटना नहीं थी, बल्कि पूरे सरकारी स्वास्थ्य ढांचे और प्रशासनिक जवाबदेही पर एक करारी चोट है। मेडिसिन वार्ड के बी ब्लॉक की तीसरी मंजिल की छत भरभराकर गिर गयी, जिससे मलबे के नीचे दबकर तीन लावारिस मरीजों की मौत हो गई और दो गंभीर रूप से घायल हो गए। मृतकों में गदड़ा के लुकास तिर्की, साकची के डेविड जॉनसन और सरायकेला के श्रीचंद तांती शामिल हैं। यह वार्ड उन मरीजों के लिए था जिन्हें कोई देखने वाला नहीं था – जिन्हें सिस्टम पहले ही ‘लावारिस’ घोषित कर चुका था।

हादसे के महज 15 मिनट के भीतर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का ‘एक्स’ हैंडल (पूर्व ट्विटर) से एक ट्वीट किया गया कि “पुरानी जर्जर इमारत का थोड़ा हिस्सा गिरा है, सभी सुरक्षित हैं।” हालांकि बाद में ट्वीट डिलीट करके दूसरा ट्वीट किया गया, लेकिन पर ये सवाल छोड़ गया कि क्या मुख्यमंत्री को गुमराह करने की कोशिश हुई। उन्हें बताया गया कि यह एक सामान्य घटना है, सभी लोग सुरक्षित हैं और इसमें किसी को कोई चोट नहीं आयी है। किसको बचाने के लिए सीएम तक को झूठी सूचना दी गयी।

ऊपर मुख्यमंत्री का वह ट्वीट है, जिसे हटा लिया गया – इसमें लिखा है कि – जमशेदपुर में एमजीएम अस्पताल के एक पुराने जर्जर भवन के हिस्से के गिरने की खबर पर जिला प्रशासन को राहत और बचाव कार्य हेतु निर्देश दिया गया तथा इस दुर्घटना में सभी सुरक्षित हैं। प्रशासन को दुर्घटना की जांच कर रिपोर्ट देने हेतु निर्देश दिया गया है।  इरफान अंसारी जी, कृपया उचित कार्रवाई सुनिश्चित करें। इस ट्वीट के जवाब में मंत्री इरफान अंसारी के हैंडल से ट्वीट किया गया कि – MGM अस्पताल, जमशेदपुर B ब्लॉक के पुराने भवन की इमारत क्षतिग्रस्त होने की सूचना प्राप्त हुई है। DC East Singhbhum को राहत एवं बचाव कार्य के लिए निर्देश दिया गया है। जिला प्रशासन द्वारा राहत एवं बचाव का कार्य जारी है। जल्द ही इसकी समीक्षा की जायेगी।

मामले की गंभीरता का पता चले बगैर और मुख्यमंत्री को गलत जानकारी देकर और उन्हें गुमराह करने की कोशिश करके ऐसा किया गया, तो यह गंभीर मामला है। क्या लापरवाह सरकारी तंत्र और उसके अफसर दोषियों को बचाने के लिए राज्य के मुखिया को गुमराह करेगा? कल के हादसे के कुछ दिन पहले स्वास्थ्य मंत्री डॉ इरफान अंसारी इस अस्पताल का औचक निरीक्षण कर गए थे। ऐसे में सवाल उठता है कि वे कैसे नहीं देख पाए कि अस्पताल की इमारत जर्जर हालत में है? क्या उनका निरीक्षण केवल फोटो खिंचवाने और बयान देने तक सीमित था? हादसे के बाद मंत्री ने मृतकों को पांच-पांच लाख और घायलों को 50-50 हजार रुपये मुआवजा देने की घोषणा की, और दोषियों पर एक हफ्ते में कार्रवाई का वादा भी किया। लेकिन यही सवाल खड़ा होता है कि क्या यह मुआवजा इस सिस्टम की हत्या की कीमत चुका पा रहा है?

भाजपा नेताओं ने हमेशा की तरह इस आपदा में भी  अवसर तलाश लिया। तीन-तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों रघुवर दास, चंपाई सोरेन और बाबूलाल मरांडी ने इस हादसे को शासन तंत्र की विफलता बताया। चंपाई सोरेन ने लिखा कि “यह सिर्फ एक बिल्डिंग नहीं, बल्कि पूरा सिस्टम ही कोलैप्स कर चुका है।” वहीं प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने घटना की उच्चस्तरीय जांच और सख्त कार्रवाई की मांग की। पूर्व मुख्यमंत्री सह पूर्व राज्यपाल रघुवर दास ने लिखा – झारखंड में मुख्यमंत्री हों या मंत्री सभी बयान वीर हैं। जमशेदपुर के एमजीएम अस्पताल में निर्दोष लोगों की मौत सरकार की लापरवाही के कारण हुई है। कम से कम अब तो सरकार जागे और MGM जैसी दुखद घटना की पुनरावृति न हो, इसे सुनिश्चित करे।

विपक्ष का आरोप है कि सरकार सिर्फ हादसों के बाद खानापूर्ति करती है, और कोई पूर्व योजना या निरीक्षण नहीं होता। सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि महज तीन साल पहले इसी इमारत की मरम्मत पर 39 लाख रुपये खर्च किए गए थे। भवन निर्माण विभाग ने यह मरम्मत कराई थी। अगर मरम्मत ठीक से होती, तो आज तीन जिंदगियां खत्म न होतीं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या इस मरम्मत के नाम पर भ्रष्टाचार हुआ? उपायुक्त अनन्य मित्तल ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित की है जिसमें एसडीओ, भवन निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता और एमजीएम कॉलेज के प्राचार्य शामिल हैं। उन्हें 48 घंटे में रिपोर्ट देने को कहा गया है।

लेकिन सवाल ये है कि क्या दोषी अफसरों पर कार्रवाई होगी या एक और रिपोर्ट फाइलों में दफन हो जाएगी? एमजीएम अस्पताल का यह हादसा सिर्फ एक तकनीकी त्रुटि नहीं है – यह एक संवेदनहीन और भ्रष्ट सिस्टम की निशानी है, जहां निरीक्षण सिर्फ कागजों पर होता है, मुआवजा दर्द की जगह ले लेता है, और जवाबदेही हमेशा ‘कमेटी’ के हवाले कर दी जाती है। जब राज्य के मुखिया को गुमराह किया जाता है। मंत्री निरीक्षण के बावजूद खतरा नहीं देख पाते, और मरम्मत सिर्फ पैसों की निकासी का जरिया बन जाती है – तो समझ लीजिए कि मरीज नहीं मरे, भरोसा मरा है।
क्या आपको लगता है कि केवल जांच कमेटी से जवाबदेही तय होगी?”
कमेंट में बताएं – दोषियों पर कार्रवाई होगी या फिर सब ‘दफ्तर’ में दफ्न हो जाएगा?”

सर्वाधिकार सुरक्षित : जन-मन की बात

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