November 22, 2025

छत्तीसगढ़ सिंडिकेट से मिलकर बदली शराब नीति, रेवेन्यू बोर्ड की आपत्ति को दरकिनार कर छत्तीसगढ़ सिंडिकेट को दी इंट्री

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झारखंड शराब घोटाले की तैयारी से जेल और अस्पताल तक की पूरी कहानी।

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IAS विनय चौबे की तबीयत बिगड़ी, रिम्स में भर्ती कराया गया, किडनी की बीमारी से हैं पीड़ित

Ranchi : शराब घोटाले में गिरफ्तारी के बाद जेल में बंद आईएएस अधिकारी विनय चौबे की तबीयत अचानक बिगड़ गयी और उन्हें बेहतर इलाज के लिए रिम्स (राजेन्द्र आयुर्विज्ञान संस्थान) में स्थानांतरित किया गया है। यह निर्णय रांची सिविल कोर्ट के आदेश पर गठित मेडिकल बोर्ड की 21 मई को हुई बैठक के बाद लिया गया, जिसमें वरिष्ठ चिकित्सकों ने उनके मेडिकल दस्तावेजों की समीक्षा कर रिम्स में भर्ती की सिफारिश की थी। जानकारी के अनुसार, विनय चौबे को किडनी संबंधी गंभीर परेशानी है। उल्लेखनीय है कि विनय चौबे को 20 मई को गजेंद्र सिंह के साथ गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के उपरांत दोनों अधिकारियों को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) की विशेष अदालत में पेश किया गया, जहाँ से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा गया। इसके पहले एसीबी की टीम ने करीब छह घंटे तक उनसे पूछताछ की थी।


क्या है पूरा मामला?

साल 2021 के अंतिम महीनों में झारखंड के शराब व्यवसाय से जुड़े लोगों के बीच यह सुगबुगाहट तेज़ हो गई थी कि 2022-23 से राज्य में एक नई शराब नीति लागू होने जा रही है, जिसमें छत्तीसगढ़ के शराब सिंडिकेट की अहम भूमिका होगी। इसी कड़ी में झारखंड के उत्पाद विभाग ने छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग लिमिटेड (CSML) को सलाहकार नियुक्त किया ताकि राज्य के राजस्व में वृद्धि की जा सके।

इस सलाह के लिए सरकार ने पूर्व अधिकारी अरुणपति त्रिपाठी को 1.25 करोड़ रुपये की फीस निर्धारित की। जब इस नीति का मसौदा राजस्व परिषद के सदस्य अमरेंद्र प्रसाद सिंह के पास अनुमोदन के लिए भेजा गया, तो उन्होंने इसमें कई खामियों की ओर इशारा करते हुए आपत्ति जताई। उनका कहना था कि जो कंपनी अपने ही राज्य में शराब राजस्व नहीं बढ़ा पा रही है, वह झारखंड में क्या सकारात्मक परिवर्तन ला पाएगी?

राज्य सरकार ने उनके सुझावों को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए नई उत्पाद नीति लागू कर दी। इसके बाद छत्तीसगढ़ का शराब सिंडिकेट झारखंड के शराब कारोबार पर हावी हो गया। टेंडर की शर्तें ऐसी रखी गईं कि थोक व्यापार इशिता और ओमसाई नाम की कंपनियों के पास चला गया। इसके अलावा बोतलों पर लगाए जाने वाले होलोग्राम का ठेका भी छत्तीसगढ़ की प्रिज्म कंपनी को दे दिया गया और खुदरा दुकानों के लिए मैनपावर सप्लाई भी उन्हीं कंपनियों को सौंपी गई।

नई नीति के प्रभाव से सबसे पहले झारखंड की देशी शराब उत्पादक इकाइयों को नुकसान हुआ। 2022-23 से पहले राज्य में देशी शराब की बिक्री प्लास्टिक की बोतलों में होती थी, लेकिन नई नीति में कांच की बोतलों का प्रावधान कर दिया गया, जिससे स्थानीय बोतलिंग प्लांट बंद हो गए। इसके बाद छत्तीसगढ़ में जमा देसी शराब का स्टॉक झारखंड में बेचा गया।

सिंडिकेट ने झारखंड की देसी शराब कंपनियों से साझेदारी की कोशिश की, लेकिन अधिकांश ने इनकार कर दिया। इसके बाद उन्हें विभागीय दबाव में लाने का प्रयास किया गया। इस बीच जब छत्तीसगढ़ ईडी ने अपने राज्य में शराब घोटाले के मामले में अरुणपति त्रिपाठी समेत अन्य लोगों को आरोपी बनाया, तब कुछ कंपनियां झारखंड से निकल गईं। वहीं, राज्य सरकार ने सिंडिकेट से जुड़ी कुछ कंपनियों के साथ किए गए समझौतों को भी रद्द कर दिया।

तीन बिंदुओं में समझिए झारखंड शराब नीति घोटाले की असली पटकथा

1. टेंडर की बंद दरवाज़ा नीति – सिर्फ चहेते पात्र
झारखंड में नई शराब नीति के तहत टेंडर की शर्तें कुछ इस तरह तैयार की गईं कि गिने-चुने कारोबारी ही उसके लिए आवेदन कर सकें। विधानसभा से पारित एक विशेष संकल्प के बाद उत्पाद विभाग ने नियमों में बदलाव कर दिए। इन संशोधित शर्तों का लाभ अनवर ढेबर और उनके कारोबारी गिरोह को पहुंचा। कहा जाता है कि तत्कालीन उत्पाद सचिव विनय चौबे और गजेंद्र सिंह के संरक्षण में नीतियों को इस तरह ढाला गया कि छत्तीसगढ़ के शराब सिंडिकेट को ही टेंडर मिल सकें।

2. टर्नओवर की चट्टान – आम प्रतिस्पर्धियों के लिए अवरोध
निविदा प्रक्रिया में एक खास शर्त रखी गई — पिछले दो वर्षों में न्यूनतम ₹100 करोड़ का टर्नओवर। इसके साथ ही 49.57 लाख की EMD और 11.28 करोड़ की बैंक गारंटी मांगी गई। 1000 नियमित कर्मचारियों की अनिवार्यता, जिनका ईपीएफ पिछले छह महीनों से जमा हो, एक और बंदिश बनी। इन शर्तों ने छोटे और मध्यम स्तर की कंपनियों के लिए मैदान बंद कर दिया और अंततः ठेका सुमित फैसिलिटीज, इगल हंटर सॉल्यूशंस, और ए टू जेड इंफ्रासर्विस जैसी छत्तीसगढ़ की कंपनियों को ही मिला।

3. होलोग्राम कंपनी भी जांच के घेरे में
शराब की बोतलों पर सुरक्षा हेतु होलोग्राम छापने का ठेका जिस कंपनी — प्रिज्म होलोग्राम एंड फिल्म सिक्योरिटी लिमिटेड — को दिया गया, वह भी पहले से छत्तीसगढ़ घोटाले में आरोपी थी। जब झारखंड की जांच एजेंसियों ने इस कड़ी की तह तक पहुँचना शुरू किया, तो प्रिज्म का नाम भी सामने आया। राज्य सरकार ने तत्काल प्रभाव से इस कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर दिया और होलोग्राम प्रिंटिंग का अधिकार छीन लिया।

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