Digital Rape – कानून बदला, क्या समाज बदलेगा? जागिए, समझिए, बोलिए
Digital Rape यौन अपराध की एक संवेदनशील परिभाषा है, जिसमें अंगुलियों या वस्तुओं से किया गया प्रवेश बलात्कार माना जाता है। जानिए इसका कानूनी पहलू, हैदराबाद केस (2022) और इससे जुड़े सामाजिक संदेश।
Digital Rape Explained: IPC 375 के तहत नयी यौन अपराध परिभाषा

Jan-Man Desk
Digital Rape क्या है और क्यों है ये घातक? जब भी “बलात्कार” शब्द सुनाई देता है, समाज का ध्यान एक ही प्रकार की यौन हिंसा पर केंद्रित होता है — पुरुष द्वारा महिला के शरीर में लिंग प्रवेश। लेकिन यौन अपराधों के दायरे में एक और गंभीर, पीड़ादायक और अब कानूनन दंडनीय कृत्य है — डिजिटल रेप, जो अक्सर सामाजिक चर्चा और संवेदना से अछूता रह जाता है।
क्या है डिजिटल रेप?
डिजिटल रेप का मतलब इंटरनेट या मोबाइल से जुड़ा अपराध नहीं है, जैसा नाम से भ्रम हो सकता है।
यहां “डिजिटल” शब्द का अर्थ है ‘digit’ यानी अंगुली या अंगुलियों द्वारा किया गया जबरन प्रवेश।
यदि कोई व्यक्ति महिला की योनि, गुदा या मूत्रमार्ग में अंगुली या किसी वस्तु का जबरन प्रवेश करता है — बिना उसकी स्पष्ट सहमति के — तो यह डिजिटल रेप की श्रेणी में आता है।
बलात्कार की बदलती परिभाषा: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
2012 के निर्भया कांड के बाद देश की आत्मा जैसे कांप उठी थी। उस घटना में न केवल सामूहिक बलात्कार हुआ, बल्कि लोहे की रॉड से की गई अमानवीयता ने देश को मजबूर किया कि वह यौन अपराधों की परिभाषा को व्यापक और यथार्थपरक बनाए।
इसी के बाद 2013 के क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट के तहत IPC की धारा 375 को संशोधित किया गया। अब केवल लिंग प्रवेश ही नहीं, बल्कि अंगुली या किसी वस्तु से किया गया जबरन प्रवेश भी बलात्कार की परिभाषा में शामिल है।
IPC के अनुसार डिजिटल रेप:
IPC की धारा 375 के अंतर्गत बलात्कार की परिभाषा अब कहती है:
“यदि कोई पुरुष किसी महिला की योनि, गुदा या मूत्रमार्ग में अपनी अंगुली, या किसी वस्तु को जबरन या उसकी सहमति के बिना प्रवेश कराता है — तो यह बलात्कार है।”
इस अपराध के लिए IPC की धारा 376 के तहत 7 से 10 साल तक का कठोर कारावास या आजीवन कारावास और जुर्माना लगाया जा सकता है।
बच्चों के मामले में: POCSO कानून की ताकत
यदि पीड़ित नाबालिग हो, तो यह अपराध POCSO (Protection of Children from Sexual Offences Act) के तहत स्वतः ही संगीन बन जाता है।
POCSO के तहत सहमति का कोई औचित्य नहीं होता, और अभियुक्त को कठोरतम सज़ा मिल सकती है।
समाज में चुप्पी और पीड़िता का द्वंद्व
डिजिटल रेप के अधिकांश मामले रिपोर्ट नहीं हो पाते। इसका कारण है —
- पीड़िता द्वारा इसे “बलात्कार” न मानना
- परिवार द्वारा सामाजिक शर्म का डर
- कानून संबंधी जानकारी का अभाव
- पुलिस थानों में संवेदनशीलता की कमी
पीड़िता अक्सर मानसिक रूप से यह मानने को तैयार ही नहीं होती कि उसके साथ जो हुआ, वह “बलात्कार” था — क्योंकि समाज ने बलात्कार की पारंपरिक परिभाषा को ही सच मान लिया है।
केस स्टडी: हैदराबाद डिजिटल रेप केस (2022)
क्या है मामला:
अप्रैल 2022 में हैदराबाद की एक 26 वर्षीय महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई कि उसका पूर्व प्रेमी उसे मानसिक और यौन रूप से प्रताड़ित कर रहा था। आरोपी ने महिला को उसके फ्लैट में बुलाकर जबरदस्ती उसकी योनि में अपनी अंगुलियां और अन्य वस्तुएं प्रवेश कराईं। यह सब उसकी बिना अनुमति और मर्जी के हुआ।
पुलिस की कार्यवाही:
- महिला की शिकायत पर IPC की धारा 376 और 375 (क्लॉज C) के तहत FIR दर्ज की गई।
- मेडिकल रिपोर्ट ने डिजिटल चोटों की पुष्टि की।
- आरोपी को तुरंत गिरफ्तार किया गया और जांच शुरू हुई।
समाज की प्रतिक्रिया:
इस केस के सामने आने के बाद सोशल मीडिया और मुख्यधारा मीडिया में इस बात पर चर्चा शुरू हुई कि रेप केवल शारीरिक संभोग नहीं, बल्कि सहमति के बिना किया गया कोई भी प्रवेश उतना ही घातक और आपराधिक है। बहुत से लोगों ने पहली बार “डिजिटल रेप” शब्द को गंभीरता से समझा।
क्यों जरूरी है जागरूकता?
- कई पीड़ित महिलाएं और पुरुष आज भी नहीं जानते कि यह एक कानूनी अपराध है, और वे चुप रह जाते हैं।
- मेडिकल एग्ज़ामिनेशन और साइकोलॉजिकल सपोर्ट से पहले जरूरी है कि पीड़िता खुद को अपराध का शिकार माने, लेकिन समाज उसे ऐसा करने नहीं देता।
- “Consent” (सहमति) की अवधारणा को हम जितनी जल्दी समझेंगे, उतना ही जल्द ऐसे अपराधों को रोका जा सकता है।
क्यों ज़रूरी है सामाजिक जागरूकता?
- बलात्कार की व्यापक परिभाषा को समाज तक पहुंचाना जरूरी है, ताकि पीड़िताएं चुप न रहें।
- बच्चों में यौन शिक्षा दी जाए, जिससे वे समझ सकें कि उनके शरीर की मर्यादा क्या है।
- पुलिस और मेडिकल स्टाफ में संवेदनशीलता और प्रशिक्षण अनिवार्य हो।
- मीडिया और सिनेमा को चाहिए कि वे यौन अपराधों को ग्लैमराइज़ करने की बजाय जागरूकता फैलाएं।
डिजिटल रेप एक ऐसा अपराध है जो शब्दों से नहीं, अनुभवों से कंपा देता है। यह जरूरी नहीं कि अपराधी ने लिंग का इस्तेमाल किया हो — ज़बरदस्ती की गई कोई भी शारीरिक घुसपैठ, पीड़िता के शरीर और आत्मा पर उतना ही घातक प्रभाव डालती है।
हमें चाहिए कि हम बलात्कार की नई कानूनी और सामाजिक परिभाषा को स्वीकारें, पीड़िताओं की आवाज़ बनें, और समाज को यह समझाएं कि बलात्कार केवल शरीर का नहीं, आत्मसम्मान का हनन है — चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो।
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