Bihar Politics : एक ट्वीट से बिहार की राजनीति में भूचाल: उपेंद्र कुशवाहा ने दी नीतीश को उत्तराधिकार सौंपने की सलाह
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Bihar Politics : 20 जुलाई 2025 को बिहार की राजनीति में एक ट्वीट ने बवंडर मचा दिया। राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने ट्वीट कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अपील की कि वे JDU की कमान अब अपने बेटे निशांत कुमार को सौंप दें। कुशवाहा का यह ट्वीट मात्र एक “सलाह” नहीं, बल्कि एक गूढ़ राजनीतिक संकेत था, जो आने वाले महीनों में न केवल जेडीयू (JDU) बल्कि पूरा NDA और बिहार की राजनीति को हिला सकता है।
सत्ता के समीकरण में खलबली
बिहार की राजनीति में उपेंद्र कुशवाहा एक ऐसे नेता माने जाते हैं, जो खुद भले ही सत्ता के शीर्ष पर न हों, लेकिन समय-समय पर अपने बयानों से सत्ता के संतुलन को चुनौती देते रहे हैं। उनका यह नया बयान ऐसे समय में आया है जब बिहार विधानसभा चुनाव में सिर्फ कुछ महीने शेष हैं, और एनडीए के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत जल्द ही शुरू होनी है।
राजनीतिक विश्लेषक इस बयान को कुशवाहा की “दबाव की राजनीति” का हिस्सा मान रहे हैं। एक ओर यह नीतीश कुमार की उम्र और नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़ा करता है, वहीं दूसरी ओर कुशवाहा को एक निर्णायक रणनीतिकार के रूप में प्रस्तुत करता है। यह ट्वीट उनकी उसी पुरानी रणनीति का हिस्सा लगता है, जिसमें वे खुद को NDA के भीतर महज़ एक सहयोगी नहीं, बल्कि एक “किंगमेकर” के रूप में स्थापित करना चाहते हैं।

जेडीयू के भीतर उठते उत्तराधिकार के सवाल
जनता दल (यूनाइटेड) सालों से नीतीश कुमार की छवि पर केंद्रित एक राजनीतिक संरचना रही है। विकास पुरुष से लेकर गठबंधन विशेषज्ञ तक, नीतीश ने विभिन्न रूपों में खुद को प्रासंगिक बनाए रखा है। लेकिन अब उम्र और स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं, बार-बार के राजनीतिक पैंतरे, और एक थक चुकी पार्टी कार्यप्रणाली ने नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं को हवा दी है।
ऐसे में कुशवाहा का सुझाव कि जेडीयू की कमान अब उनके बेटे निशांत कुमार को दी जाए, जेडीयू के भीतर एक नई बहस को जन्म देता है। निशांत एक पेशेवर इंजीनियर हैं और अभी तक सक्रिय राजनीति से दूरी बनाए हुए हैं। उनके पास न जनाधार है, न कोई सांगठनिक अनुभव। उन्हें सामने लाना पार्टी के भीतर एक “वंशवाद बनाम संघर्षशील नेतृत्व” की बहस को जन्म दे सकता है, खासकर तब जब नीतीश कुमार स्वयं दशकों तक वंशवाद का विरोध करते आए हों।
जेडीयू में इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया आई। प्रवक्ता राजीव रंजन ने इसे “बाहरी हस्तक्षेप” बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया और नीतीश को पार्टी का अभिभावक करार दिया। लेकिन सूत्रों के अनुसार, पार्टी के भीतर कुछ वरिष्ठ नेता इस पर मौन रहकर नेतृत्व परिवर्तन की संभावना को परोक्ष समर्थन दे रहे हैं।
भाजपा की चुप्पी: अवसर की प्रतीक्षा?
भाजपा ने इस मुद्दे पर अब तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन अंदरखाने पार्टी इस घटनाक्रम को “एनडीए के भीतर संभावित बदलाव” के रूप में देख रही है। भाजपा जानती है कि नीतीश कुमार के बिना जेडीयू का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है, लेकिन साथ ही वह यह भी समझती है कि यदि जेडीयू में नेतृत्व परिवर्तन होता है या अस्थिरता आती है, तो 2025 के चुनावों में मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा खुद को सबसे प्रमुख दावेदार के रूप में स्थापित कर सकती है।
विपक्ष की प्रतिक्रिया: संदेह नहीं, अवसर
राजद नेता तेजस्वी यादव ने तुरंत हमला बोला और कहा कि जब कप्तान थक चुका हो, तो टीम बिखरना तय है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अब बिहार को स्थायी, सक्रिय और युवा नेतृत्व की आवश्यकता है। कांग्रेस ने भी इस बयान को NDA की अंदरूनी दरारों का प्रमाण बताया और दावा किया कि केवल महागठबंधन ही राज्य को स्थायित्व दे सकता है।
प्रशांत किशोर, जो अपने तीखे विश्लेषणों और पूर्ववाणियों के लिए जाने जाते हैं, ने इस बार कोई सीधी टिप्पणी नहीं की, लेकिन उनका यह कथन कि “बिहार को अब नई सोच और नई ऊर्जा की ज़रूरत है” — नीतीश युग के थमने की ओर संकेत करता है।
मीडिया का दृष्टिकोण: राजनीतिक विश्लेषण से जनधारणा तक
टेलीविज़न चैनलों और अखबारों में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया गया। प्रभात खबर ने इसे “नीतीश को संन्यास की सलाह या उत्तराधिकार की योजना?” कहकर हेडलाइन बनाई। हिंदुस्तान टाइम्स ने लिखा “RLM की चाल या NDA की चुनौती?” न्यूज़ चैनलों पर इस मुद्दे पर बहस की बाढ़ आ गई — कुछ ने इसे NDA की आंतरिक शक्ति संघर्ष बताया, तो कुछ ने इसे कुशवाहा की महत्वाकांक्षा का इशारा।
आगे क्या?
इस पूरे घटनाक्रम के बाद तीन प्रमुख सवाल बिहार की राजनीति में तैरने लगे हैं:
- क्या जेडीयू नेतृत्व परिवर्तन की ओर बढ़ेगी?
यदि पार्टी इस सलाह पर विचार करती है, तो यह एक नए राजनीतिक युग की शुरुआत होगी। लेकिन जोखिम यह है कि इससे पार्टी में अस्थिरता और गुटबाज़ी गहरा सकती है। - क्या कुशवाहा NDA से अलग हो सकते हैं?
अगर उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो वह एक बार फिर NDA से अलग हो सकते हैं। वे पहले भी ऐसे कर चुके हैं। - क्या भाजपा इस दरार को अपने पक्ष में मोड़ेगी?
भाजपा चुपचाप देख रही है कि कब जेडीयू में दरारें निर्णायक रूप लें, ताकि वह अपना नेता आगे बढ़ा सके।
महज़ सलाह नहीं, सियासी शतरंज की चाल
उपेंद्र कुशवाहा का यह ट्वीट सिर्फ एक विचार नहीं था — यह बिहार की राजनीतिक शतरंज में एक चाल है। यह नीतीश कुमार की पकड़, जेडीयू की दिशा, NDA की एकता और विपक्ष की रणनीति — सभी पर असर डालता है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि नीतीश कुमार इस सलाह को “शब्दों की शरारत” मानकर अनदेखा करते हैं या इसके जवाब में कोई नई राजनीतिक पटकथा लिखते हैं। लेकिन इतना तय है — यह मामला कुछ दिनों में नहीं, बल्कि चुनावों तक बिहार की राजनीति के केंद्र में बना रहेगा।
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