November 22, 2025

Bihar Election : मतदाता सूची से लेकर सीट बंटवारे तक झामुमो-भाजपा और इंडिया गठबंधन के बीच टकराव

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Bihar Election 2025 (बिहार चुनाव 2025) से पहले झामुमो और भाजपा आमने-सामने हैं। मतदाता सूची पुनरीक्षण से लेकर इंडिया गठबंधन में सीटों की अनदेखी तक, यह सियासी संघर्ष कई परतों में उलझा है।

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Bihar Election को लेकर झामुमो मतदाता पुनरीक्षण पर सवाल उठा रहा है, वहीं INDIA गठबंधन में सीट बंटवारे से खुद को दरकिनार किए जाने से नाराज भी है। भाजपा इस नाराजगी को राजनीतिक मौके में बदलने की कोशिश में है।

 Bihar Election

Bihar Election 2025 News : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी ने एक ऐसा राजनीतिक रंग ले लिया है, जहां प्रशासनिक प्रक्रिया और गठबंधन राजनीति आपस में गुथ गयीं हैं। एक ओर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) बिहार में चुनाव आयोग द्वारा कराए जा रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण पर सवाल उठा रहा है, वहीं दूसरी ओर उसी झामुमो को INDIA गठबंधन के सीट बंटवारे में दरकिनार किया जा रहा है। भाजपा इस संपूर्ण असंतुलन को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश में है।


बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर झामुमो की आपत्ति

निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार में मतदाता पुनरीक्षण की प्रक्रिया शुरू होते ही झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने इसे “चुनावी एनपीआर और एनआरसी” करार देते हुए कहा कि इससे सामाजिक तनाव और अफरा-तफरी फैलेगी।

उन्होंने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया चुनाव की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकती है और इसके ज़रिये कुछ वर्गों को वोटिंग से बाहर करने की साजिश हो सकती है।

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हालांकि चुनाव आयोग का तर्क है कि हर चुनाव से पहले यह प्रक्रिया एक नियमित और संवैधानिक कदम है। लेकिन झामुमो की आशंका है कि इसके पीछे राजनीतिक उद्देश्य भी हो सकते हैं।

झामुमो की आपत्ति पर भाजपा की प्रतिक्रिया अपेक्षित रूप से तीखी रही। भाजपा सांसद डॉ. प्रदीप वर्मा ने झामुमो पर आरोप लगाया कि वह झारखंड में असफलताओं से ध्यान हटाने के लिए बिहार की राजनीति में घुसपैठ कर रहा है। उन्होंने कहा कि मतदाता सूची पुनरीक्षण हर चुनाव से पहले होता है, यह कोई नई बात नहीं है।

प्रदीप वर्मा ने कहा-

उन्होंने झामुमो से यह भी पूछा कि वह खुद अपने राज्य में युवाओं, बेरोजगारी, महिलाओं की सुरक्षा और विकास के मुद्दों पर क्या कर रहा है। इस तरह भाजपा ने झामुमो को “डायवर्जन पॉलिटिक्स” का दोषी ठहराया।


INDIA गठबंधन में उपेक्षा से खफा है झामुमो

झामुमो की नाराजगी सिर्फ प्रशासनिक प्रक्रियाओं तक सीमित नहीं है। पार्टी अंदरखाने INDIA गठबंधन से भी असंतुष्ट है। दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर जो प्रारंभिक सीट बंटवारे का फॉर्मूला तैयार किया गया है, उसमें झामुमो को कोई सीट नहीं दी गई है।

झामुमो के केंद्रीय महासचिव मनोज पांडेय ने रांची में कहा —

“हमने राजद को अपनी मांगें बता दी हैं। चाहे गठबंधन तवज्जो दे या नहीं, झामुमो हर हाल में बिहार में चुनाव लड़ेगा।”

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पार्टी अधिवेशन में यह निर्णय हो चुका है और तैयारी भी शुरू हो चुकी है। पांडेय ने यह भी याद दिलाया कि पिछली सरकार में झारखंड में राजद विधायक को मंत्री बनाया गया था, इसलिए अब बारी राजद की है गठबंधन धर्म निभाने की।


भाजपा की प्रतिक्रिया: विरोध में मौका ढूंढती रणनीति

भाजपा इस पूरी स्थिति को भुनाने और झमुमो को उकसाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। पूर्व मंत्री अमर बाउरी ने कहा है कि “महागठबंधन” के नाम पर जनता को झूठी एकता का सपना दिखाने वाले दल असल में एक-दूसरे को नीचा दिखाने और बेइज्जत करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सीटों का बंटवारा हुआ —राजद : 138, कांग्रेस : 54, और झामुमो को? – ZERO!

ये वही JMM है जिसने झारखंड में कांग्रेस को ढोया, लेकिन जब बारी आई सम्मान की, तो इनकी राजनीतिक हैसियत को गठबंधन के दरवाज़े से बाहर कर दिया गया।

बिहार में RJD और कांग्रेस की गहरी “समझदारी” अब JMM के लिए सबक है —

आत्मसम्मान की राजनीति कभी भी समझौतों की कुर्बानी नहीं होनी चाहिए।

इधर बिहार भाजपा के सह-प्रभारी दीपक प्रकाश और पूर्व विधायक अमित मंडल ने कांग्रेस और राजद पर तंज कसते हुए कहा कि वे झामुमो को “यूज़ एंड थ्रो” की तरह देख रहे हैं।

अमित मंडल ने कहा —

“झारखंड में जेएमएम बड़े भाई की भूमिका में है, तो बिहार में राजद है। लेकिन वहां उसे छोटा भाई मानते हुए सीटें नहीं दी जा रही हैं।”

दीपक प्रकाश ने तो कांग्रेस की नीति को “गन्ना चूसकर फेंकने” वाली नीति कहा और दावा किया कि संताल जैसे क्षेत्रों में कांग्रेस की बढ़ती दखल से झामुमो भीतर ही भीतर नाराज चल रहा है।

भाजपा की यह रणनीति साफ है – वह झामुमो की नाराजगी को हवा देकर INDIA गठबंधन में दरार गहरी करना चाहती है, जिससे उसका असर झारखंड की राजनीति पर भी हो।


राजनीतिक संदर्भ: सीमाएं नहीं, समीकरण महत्वपूर्ण

यह पूरा विवाद इस बात को उजागर करता है कि अब राज्यों की भौगोलिक सीमाएं राजनीतिक समीकरणों में बाधा नहीं बनतीं। झामुमो जैसे क्षेत्रीय दल बिहार में चुनाव लड़ना चाहते हैं, तो उसकी जड़ें सीमावर्ती जिलों में मौजूद उनके जनाधार में हैं।

चाहे पूर्णिया हो, कटिहार, सहरसा या सीमांचल – इन इलाकों में आदिवासी और दलित वर्ग की अच्छी पकड़ है, जो झारखंड की राजनीति से भी प्रभावित होता रहा है।

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गठबंधन धर्म बनाम सियासी स्वार्थ

झामुमो का तर्क है कि उसने झारखंड में गठबंधन धर्म का पूरा पालन किया है। ऐसे में बिहार में उसे नज़रअंदाज़ करना न केवल गलत है, बल्कि INDIA गठबंधन के भीतर भेदभाव और शक्ति-संतुलन की असमानता को भी उजागर करता है।

अगर झामुमो की उपेक्षा लगातार बनी रही, तो हो सकता है कि वह बिहार में अकेले चुनाव लड़ जाये। अगर ऐसा हुआ तो यह INDIA गठबंधन के दूसरे सहयोगी दलों के बीच भी अविश्वास का बीज बो सकता है।


क्या INDIA गठबंधन बिखरने की ओर बढ़ रहा है?

इस पूरे विवाद से कुछ स्पष्ट संकेत मिलते हैं:

  1. झामुमो अब सिर्फ झारखंड तक सीमित नहीं रहना चाहता।
  2. INDIA गठबंधन में ‘बड़े भाई’ की भूमिका को लेकर अंतर्विरोध हैं।
  3. भाजपा इन विरोधाभासों का उपयोग कर खुद को लाभ की स्थिति में लाना चाहती है – विशेष रूप से झारखंड में।

अगर यह खींचतान और आगे बढ़ती है तो आनेवाले चुनावों में INDIA गंठबंधन का ताना-बाना दरक सकता है और भाजपा इसे अपने पक्ष में भुनाने की पूरी कोशिश कर सकती है।

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