मेडल न सर्टिफिकेट; चाईबासा के जगन्नाथपुर में सरकारी स्कूलों के Toppers को सम्मान के नाम पर थमा दी 2 रुपये की टॉफी!
झारखंड के सरकारी स्कूलों के 10वीं और 12वीं के Toppers (टॉपर्स) को केवल पेन और दो चॉकलेट देकर सम्मानित किया गया। क्या सरकारी शिक्षा प्रणाली ऐसे ही प्रोत्साहित की जाएगी? उठ रहे हैं तीखे सवाल।
पानी और बैठने का इंतजाम भी नहीं, Toppers के अभिभावक बोले- इससे अच्छा तो आते ही नहीं

Chaibasa : Toppers Felicitation ceremony controversy झारखंड के चाईबासा जिले के जगन्नाथपुर प्रखंड में शनिवार को जो हुआ, वह सिर्फ शर्मनाक नहीं था, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि क्या सरकारी शिक्षा को हतोत्साहित करने की कोई साजिश चल रही है?
जगन्नाथपुर प्रखंड के मैट्रिक और इंटरमीडिएट परीक्षा में टॉप करने वाले आठ सरकारी हाई स्कूलों के टॉपर विद्यार्थियों को जब सम्मानित करने के लिए बुलाया गया तो सभी ने सोचा – अब मंच पर बुलाया जाएगा, प्रमाण पत्र या मेडल मिलेगा, जिसे संजो कर रखा जा सकेगा, गर्व से दूसरों को दिखाया जा सकेगा। पर जो मिला वह था – एक सस्ता पेन और एक रुपये वाली दो टॉफी। इससे बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावकों में गहरी निराशा है। रही सही कसर आयोजन की घटिया व्यवस्था ने पूरी कर दी। आयोजन स्थल पर न तो बैठने का इंतजाम था न पीने को पानी।
‘लॉलीपॉप’ सम्मान से क्या संदेश गया?
इस सम्मान समारोह में मेधावी बच्चे-बच्चियों को जो मिला, वह न सम्मान था, न प्रेरणा – बल्कि ताना था। लॉलीपॉप और चॉकलेट देकर बच्चों की प्रतिभा का उपहास उड़ाया गया। क्या इतने में बच्चों की मेहनत का मूल्यांकन हो गया? क्या मेडल या प्रमाण पत्र इतनी बड़ी चीज थी जो दी नहीं जा सकती थी? और अगर नहीं दी जा सकती थी, तो ये नाटक करने की जरूरत क्या थी।
अगर यही कार्यक्रम किसी प्राइवेट स्कूल का होता, तो मीडिया कवरेज, आकर्षक सर्टिफिकेट, शील्ड, और कैश प्राइज तक की घोषणा होती। बच्चों को किसी वीआईपी के हाथों सम्मानित कराया जाता। वहां एक टॉपर को मंच पर चढ़ने भर से प्रेरणा मिलती है। लेकिन सरकारी स्कूलों में – वहां तो जोश और आत्मसम्मान का गला घोंटने की तैयारी थी।
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बिना तैयारी, बिना व्यवस्था – बस खानापूर्ति
इस कार्यक्रम की योजना इतनी गैर-जिम्मेदाराना थी कि न बैठने की व्यवस्था थी, न पानी, न ही बच्चों के स्वागत की कोई गरिमा। कई अभिभावक गाड़ी बुक कर बच्चों को लेकर पहुंचे थे – इस विश्वास के साथ कि सरकारी सम्मान कुछ मायने रखेगा। लेकिन वे ठगे गए। कई बच्चों और अभिभावकों ने इस अवव्यवस्था पर गहरी नाराजगी जताई और कहा कि इससे अच्छा तो वे घर पर ही रह जाते।
एक अभिभावक ने बताया, “इतनी दूर से गाड़ी बुक कर यहां आये। यहां न कोई बैठने की व्यवस्था है, न पानी की। ऊपर से सम्मान के नाम पर मिला बस एक पेन और दो चॉकलेट? यह बच्चों की मेहनत का अपमान है। अगर सम्मानित करना ही था तो कम से कम एक प्रमाण पत्र और मेडल तो देना ही चाहिए था।
एक अभिभावक ने गुस्से में कहा –
“हमारे बच्चों को दो टॉफी देकर क्या यह बताना चाहते हैं कि सरकारी स्कूल में टॉप करने की कोई कीमत नहीं?”
अब सवाल उठता है – क्या इस अपमानजनक आयोजन के जिम्मेदार अधिकारियों से जवाब लिया जाएगा?
मीडिया में खबर है कि जब प्रभारी प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी से इस पर प्रतिक्रिया मांगी गई, तो उन्होंने फोन तक काट दिया। क्या सरकारी कर्मचारियों की जवाबदेही अब इतने स्तर पर गिर चुकी है कि वे बच्चों का अपमान कर चुपचाप निकल जाएं?
सरकारी शिक्षा की साख कैसे बचेगी?
जब सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाला बच्चा टॉप करता है, तो उसका संघर्ष निजी स्कूल के छात्र से कहीं बड़ा होता है। सीमित संसाधन, किताबों की कमी, डिजिटल गैप – सब कुछ के बावजूद टॉपर बनना आसान नहीं होता। ऐसे में यदि उसे सर्टिफिकेट और मेडल नहीं मिलते, तो उसका मनोबल टूटता है।
सरकारी शिक्षा में सुधार का दावा तभी सार्थक होगा जब उसके टॉपर छात्रों को सिर्फ लॉलीपॉप नहीं, गर्व से सिर उठाने लायक सम्मान मिलेगा।
सवाल कई हैं
सरकार और शिक्षा विभाग को तय करना होगा –
क्या वह सरकारी स्कूल के टॉपर को सिर्फ एक पेन और दो टॉफी के लायक समझती है?
या वह उन्हें भी उतनी ही गरिमा से देखना चाहती है जितनी किसी प्राइवेट स्कूल में होती है?
अगर सरकार वास्तव में सरकारी शिक्षा को सशक्त बनाना चाहती है, तो सम्मान समारोह केवल रस्म नहीं, एक संस्कार होना चाहिए – जहां मेडल हो, प्रमाण पत्र हो, और सबसे जरूरी – एक भरोसा हो कि मेहनत रंग लाएगी।
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