JSCA चुनाव : अमिताभ की विरासत पर दावेदारी, कौन बनेगा झारखंड क्रिकेट का नया ‘चौधरी’?
JSCA चुनाव 2025 झारखंड क्रिकेट के मैदान से सियासत तक की सबसे दिलचस्प जंग बन चुका है। पढ़िए कैसे एक क्रिकेट संघ का चुनाव बन गया है पावर, पैसा और प्रतिष्ठा का महासंग्राम।
आनंद कुमार
अगले 18 मई को झारखंड स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन यानी JSCA का चुनाव है। सुनने में लगता है कि यह क्रिकेट की राजनीति से जुड़ा एक सामान्य चुनाव है, लेकिन ये सिर्फ क्रिकेट का चुनाव नहीं, झारखंड की सत्ता और सिस्टम में पकड़ रखने वालों की पावर प्ले की सबसे बड़ी पिच बन चुकी है। झारखंड की जनता को इस चुनाव से शायद सीधा कोई लेना-देना न हो, लेकिन जिनके पास सिस्टम का कंट्रोल बटन होता है,– नेता, नौकरशाह और उद्योगपति – वे इस चुनाव में पूरी दिलचस्पी से हिस्सा ले रहे हैं। पर्दे के पीछे से कई खिलाड़ी एक्टिव हैं और पावरफुल लॉबी दो खेमों में बंट चुकी है। कौन हैं इस चुनाव के दिग्गज खिलाड़ी? क्या है जीत-हार के समीकरण? और क्यों क्रिकेट एसोसिएशन का ये चुनाव अखाड़ा बन गया है पावर और ईगो की जंग का? आइए, खोलते हैं पूरा पिटारा!

साल 2005, जेएससीए का पहला चुनाव था। इसके पहले बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (BCA) 1935 था, जो बीसीसीआई से मान्यता प्राप्त संस्था थी। बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (BCA) 1935 कैसे जेएससीए बना और कैसे बिहार क्रिकेट एसोसिएशन की मान्यता खत्म हुई, वह एक कहानी है। एक सीएजे भी बना था। लेकिन 2005 में जेएससीए के पहले चुनाव में झारखंड के गृह मंत्री सुदेश महतो के खिलाफ उन्हीं के मातहत पुलिस अधिकारी रहे अमिताभ चौधरी चुनाव लड़ गये थे। सुदेश महतो को हरा दिया था और जीतने के बाद झारखंड क्रिकेट संघ की नियमावली ही बदल दी थी। यह पहली बार था, जब जेएससीए का चुनाव आम लोगों के लिए उत्सुकता और चर्चा का सबब बना था और क्रिकेट की राजनीति ने अखबारों के स्पोर्ट्स पेज से उठकर पहले पन्ने की सुर्खियां बटोरी थीं। बाद के दिनों में अमिताभ चौधरी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मधु कोड़ा और ताकतवर टाटा स्टील से पंगा लिया। जेएससीए से टाटा का वर्चस्व तोड़ा और रांची में इंटरनेशनल स्टेडियम बना कर सुनिश्चित कर दिया कि जमशेदपुर के कीनन स्टेडियम में आगे कोई इंटरनेशनल मैच नहीं होगा। अमिताभ चौधरी आगे चलकर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के कार्यवाहक सचिव तक बने। अमिताभ से जिसकी नहीं बनी, वह जेएससीए में नहीं रहा। पूर्व मुख्य सचिव पीपी शर्मा, पूर्व आईजी प्रवीण सिंह, पूर्व सांसद अजय मारू, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और सांसद दीपक प्रकाश, बाबूलाल मरांडी के एक समय अनन्य सहयोगी प्रवीण सिंह जैसे रसूखदार लोग भी अपनी मेंबरी नहीं बचा सके। करीब दो दशक तक जेएससीए और अमिताभ चौधरी एक ही सिक्के के दो पहलू रहे।
15 पदों पर 30 उम्मीदवार, यानी आमने-सामने की टक्कर
2022 में अमिताभ चौधरी के आकस्मिक निधन के बाद जेएससीए का यह पहला चुनाव है। और यह चुनाव भी अमिताभ चौधरी की छाया में ही लड़ा जा रहा है। चुनाव मेें खड़े दोनों गुट अमिताभ चौधरी की विरासत को ही आगे बढ़ाने का वायदा कर रहे हैं। “टीम एसके बेहरा-अमिताभ के लोग” ने अध्यक्ष पद के लिए उद्योगपति एसके बेहरा को खड़ा किया है, जो जानेमाने बिजनेस लीडर हैं। इस चुनावी भहाभारत में अगर बेहरा को अर्जुन माना जाये, तो आईपीएस अधिकारी और वर्तमान में पु्लिस महानिरीक्षक अखिलेश झा उनके सारथी की भूमिका में हैं। दूसरी तरफ है ‘द टीम’, जिसके अध्यक्ष पद के दावेदार कांग्रेस नेता अजय नाथ शाहदेव हैं। इस टीम को निवर्तमान अध्यक्ष संजय सहाय, निवर्तमान कोषाध्यक्ष राजीव बधान, असीम आदि का समर्थन हासिल है। 18 मई को होनेवाले चुनाव के नामांकन वापसी की आज अंतिम तारीख थी। सचिव पद से निर्दलीय देवाशीष चक्रवर्ती, जो निवर्तमान सचिव भी थे और उपाध्यक्ष पद से मांधाता सिंह समेत कुछ छह लोगों ने नामांकन वापस ले लिया और अब कुल 15 पदों के लिए 30 लोग मैदान में बचे हैं। यानी हर पद पर मुकाबला आमने-सामने का है।
बिजनेस लीडर और पॉलीटिकल लीडर की जंग में कौन भारी
“टीम एसके बेहरा-अमिताभ के लोग” की कप्तानी कर रहे एसके बेहरा आरएसबी ग्रुप के एमडी हैं। उनकी कंपनी मुख्य रूप से देश और विदेश की नामीगिरामी वाहन कंपनियों के पुर्जे बनाती है और इसकी मैन्युफैक्चरिंग इकाईयां भारत में 16 जगहों के अलावा अमेरिका और मैक्सिको में भी हैं। कंपनी का टर्न ओवर दो हजार करोड़ से ऊपर है और खुद एसके बेहरा हाल तक सीआईआई की पूर्वी क्षेत्र परिषद के चेयरमैन भी थे।
दूसरी तरफ है द टीम जिसकी अगुवाई कर रहे हैं, अजयनाथ शाहदेव। अजयनाथ शाहदेव कांग्रेस के नेता हैं। रांची के डिप्टी मेयर रह चुके हैं और हाल में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में वे हटिया सीट के कांग्रेस के प्रत्याशी थे। हालांकि जीत उनको नहीं मिली थी। एसके बेहरा औऱ अजयनाथ शाहदेव दोनों अध्यक्ष पद के दावेदार हैं. यानी मुकाबला एक सफल बिजनेस लीडर और एक राजनीतिक योद्धा के बीच है। संयोग है कि द टीम की तरफ से उपाध्यक्ष पद के दावेदार संजय पांडे भी कांग्रेस पार्टी से ही आते हैं और कांग्रेस झारखंड की सत्ताधारी पार्टी भी है।
पिच पर कौन टिकेगा? क्यूरेटर या खिलाड़ी
जहां तक मानद सचिव के पद पर मुकाबले की बात है, तो मुकाबला पिच क्यूरेटर बनाम खिलाड़ी के बीच है। टीम एसके बेहरा की तरफ से सचिव पद पर खड़े हैं डॉ एसबी सिंह जो जेएससीए स्टेडियम के पिच क्यूरेटर हैं और उनके मुकाबले खड़े हैं सौरभ तिवारी जो झारखंड रणजी टीम के कप्तान रह चुके हैं, टीम इंडिया की जरसी में तीन एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुके हैं और आईपीएल में मुंबई इंडियंस की तरफ से खेल चुके हैं। हाल ही में उन्होंने क्रिकेट से संन्यास लिया है। हालांकि विधानसभा चुनाव के दौरान भी तेज चर्चा थी कि सौरभ तिवारी जमशेदपुर पूर्वी की सीट से चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अब सौरभ क्रिकेट एसोसिएशन की चुनावी राजनीति में हाथ आजमाने उतरे हैं। द टीम से एक और पूर्व इंटरनेशनल खिलाड़ी शाहबाज नदीम भी संयुक्त सचिव पद पर उम्मीदवार हैं। नदीम ने 2019 से 2021 के बीच दो टेस्ट मैच खेले और आठ विकेट उनके नाम हैं। आईपीएल में लखनऊ सुपर जायंट्स के लिए खेल चुके शहबाज के नाम फर्स्ट क्लास मैचों में 542 विकेट हैं।
सौरभ और शाहबाज क्यों भायी किक्रेट राजनीति
आश्चर्य की बात यह है कि सौरभ तिवारी अभी भी मुंबई इंडियंस से जुड़े हैं। वे देश में स्काउटिंग करके ऐसे नये और उभरते खिलाड़ियों की तलाश करते हैं जिन्हें मुंबई इंडियंस से जोड़ा जा सके। झारखंड के रॉबिन मिंज भी ऐसे ही मुंबई इंडियंस पहुंचे हैं. सौरभ को इसके एवज में मोटी सैलरी मिलती है। सूत्र बताते हैं कि जेएससीए चुनाव जीतने पर उन्हें मुंबई इंडियंस की नौकरी छोड़नी होगी क्योंकि यह कांफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट का मामला बन जायेगा। इसी तरह शाहबाज नदीम भारतीय रिजर्व बैंक में नौकरी करते हैं। जो भी हो इन दोनों अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की मौजूदगी ने भी चुनाव को रोचक बना दिया है।
सत्ता की चाबी जमशेदपुर-रांची के वोटरों के पास
जहां तक वोटरों की बात है, कुल 718 वोटर इस चुनाव में वोट डालेंगे। इनमें एक मृतक भी शामिल हैं। सबसे ज्यादा वोटर जमशेदपुर और रांची को मिलाकर हैं। दोनों जगहों को मिलाकर करीब चार सौ वोटर हैं। बाकी वोटर झारखंड के 22 जिलों में हैं। मतलब सारा खेल तीन सवा तीन सौ वोटों का है। और एक-एक वोट के लिए जबर्दस्त जद्दोजहद चल रही है। पिछले चुनावों में वोट के मठाधीश माने जानेवाले लोग भी फिलहाल इधर-उधर होते दिख रहे हैं और यही कारण है कि चुनाव रोचक हो गया है। जानकारी के अनुसार करीब डेढ़ साल पहले जेएससीए के कंट्री क्लब का चुनाव हुआ था। उसमें क्लब के वोटरों में करीब 350 ऐसे वोटर थे, जो जेएससीए के भी वोटर हैं। उस चुनाव में वही गुट जीता था जो अभी एसके बेहरा के साथ है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इस गुट में अजयनाथ शाहदेव भी शामिल थे, जो अब खुद अध्यक्ष पद के दावेदार हैं। जमशेदपुर के राजेश वर्मा ‘बॉबी’ और राजीव बधान भी इसी गुट में थे। पीएन सिंह भी साथ थे।
क्या गुल खिलायेगी बॉबी और बधान की जोड़ी
बॉबी और बधान की गिनती जेएससीए के सीनियर वोट मैनेजरों में होती है। एक समय अमिताभ चौधरी के तारनहार और खासमखास रहे राजेश वर्मा बॉबी अब चुनावी मुकाबले से रिटायर हो गये हैं और निर्वतमान कोषाध्यक्ष राजीव बधान को इस बार कूलिंग ऑफ में जाना है। वे अगले तीन साल तक जेएससीए का कोई चुनाव नहीं लड़ सकते। चुनावी मैदान से बाहर होने के बाद बॉबी और बधान को अपनी प्रासंगिकता और किंगमेकर की छवि बनाये रखनी है इसलिए इनपर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा। 2019 में बॉबी ने आखिरी समय में बाजी पलट दी थी, इस बार क्या करेंगे, इसपर भी लोगों की नजर है।
अभी जो दिख रहा है, वह यह है कि असली खिलाड़ी तो पर्दे के पीछे से खेल रहे हैं। जोड़-तोड़ और पाला बदल का खेल लगातार जारी है। जेएससीए के पिछले चुनावों ने दिखाया है कि कसमें, वादे, प्यार, वफा सब बातें हैं। असली खेल तो स्वार्थ का है। जिससे जिसका मतलब सधेगा, उसका वोट उसी को मिलेगा।
क्यों इतना खास है जेएससीए का चुनाव?
जानकार बताते हैं कि बीसीसीआई सालाना कम से कम 110 करोड़ रुपये जेएससीए को देती है। यह राशि खेल और खिलाड़ियों के विकास, टूर्नामेंटों के आयोजन तथा आधारभूत संचरना के रखरखाव और विकास जैसे कामों के लिए दी जाती है। इसे जेएसएसी अपनी मर्जी से खर्च कर सकता है। इसके अलावा जो राज्य संघ बीसीसीआई द्वारा आयोजित किये जानेवाले टूर्नामेंट की मेजबानी करते हैं, खिलाड़ियों और ऑफिशिल्स के रहने-खाने और आनेजाने पर खर्च करते हैं, उनका भुगतान अलग से मिलता है। इसके अलावा जो लोग एसोसिएशन में चुन कर आते हैं वे अपने लोगों यानी वोटरों को कोच, मैनेजर, ऑबजर्वर, चयन समिति और विभिन्न समितियों में रखकर उन्हें धन और पद से उपकृत करने का माध्यम भी बनते हैं। जूनियर और सीनियर टीमों के सलेक्शन का सारा पावर मैनेजिंग कमेटी में निहित होता है। इसके अलावा भी जायज-नाजायज कमाई और क्रिकेट की सत्ता पर नियंत्रण का लालच भी लोगों को आकर्षित करता है। लेकिन यही एसोसिएशन क्रिकेट और क्रिकेटरों की भलाई का जरिया भी है। बशर्ते पदाधिकारी लालची न हों, स्वार्थी न हों। उनमें देने की प्रवृत्ति हो, लेने की नहीं।
18 मई पर टिकी हैं सबकी निगाहें
जेएसएसीए के चुनाव में क्या होगा, ये खिलाड़ी या खेलप्रेमी तय नहीं करेंगे, ये तो वोटरों को ही तय करना है कि अगले तीन साल तक झारखंड क्रिकेट का कंट्रोल किसके हाथ में रहेगा। तो अब देखना ये है कि JSCA की कमान कौन लेगा? फैसला होगा 18 मई को। लेकिन तब तक झारखंड की सबसे हाई-वोल्टेज क्रिकेट पॉलिटिक्स का खेल जारी रहेगा – जहां हर एक वोट के लिए पावर, प्रेशर और परसेप्शन का गेम जारी है।
