संविधान का 130वां संशोधन: राजनीति को स्वच्छ बनाएगा या सरकार गिराने का हथियार बनेगा?
संविधान का 130वां संशोधन प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों के लिए नया नियम लाता है—30 दिन से अधिक हिरासत में रहने पर पद स्वतः समाप्त होगा। हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल के मामलों से समझें इस कानून के फायदे और विवाद।
हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल : दो अलग मिसालें – सोरेन ने इस्तीफा देकर संकट टाला, केजरीवाल ने जेल से चलाई सरकार

जन-मन डेस्क
अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और जेल से चलती रही दिल्ली सरकार ने देश में गहरी बहस छेड़ दी थी—क्या किसी मुख्यमंत्री को हिरासत में रहते हुए भी पद पर बने रहने देना लोकतंत्र की मजबूती है या उसकी साख पर धब्बा? इसी संदर्भ में केंद्र सरकार ने संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025 पेश किया है, जिसके तहत यदि कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री गंभीर आरोपों में 30 दिनों से अधिक हिरासत में रहता है, तो उसका पद स्वतः समाप्त हो जाएगा। सवाल यह है कि क्या यह संशोधन राजनीति को अधिक नैतिक और जवाबदेह बनाएगा, या फिर यह विपक्षी दलों की सरकारें गिराने का नया औजार बनेगा?
हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल: दो अलग मिसालें
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रवर्तन निदेशालय की गिरफ्तारी से पहले ही इस्तीफ़ा देकर संवैधानिक संकट से बचने की कोशिश की थी। लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गिरफ्तारी के बाद भी पद नहीं छोड़ा। परिणाम यह हुआ कि प्रशासनिक निर्णयों पर ठहराव आया और विपक्ष ने आरोप लगाया कि “जेल से सरकार” चलाना जनता के साथ अन्याय है। यह उदाहरण दिखाता है कि कानून की स्पष्टता के अभाव में राजनीतिक असमंजस कैसे गहराता है।
कानून का घोषित उद्देश्य: नैतिक राजनीति
सरकार का तर्क है कि यह संशोधन नेताओं को नैतिक ज़िम्मेदारी निभाने के लिए बाध्य करेगा। लोकतंत्र में शीर्ष पदों पर बैठे व्यक्तियों से यह उम्मीद की जाती है कि वे भ्रष्टाचार या गंभीर आपराधिक मामलों में फँसने की स्थिति में खुद पद छोड़ देंगे। लेकिन जब यह परंपरा टूटने लगी, तब संसद को हस्तक्षेप करना पड़ा।
विपक्ष की चिंता: हथियार बनेगा क्या?
विपक्ष का आरोप है कि यह प्रावधान केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों को और शक्तिशाली बना देगा। अगर किसी विपक्षी नेता की गिरफ्तारी कर दी जाए और 30 दिन तक आरोपपत्र दाख़िल न भी हो, तब भी उसकी सरकार गिर सकती है। बंगाल, तमिलनाडु, दिल्ली और झारखंड जैसे राज्यों में इस संशोधन का राजनीतिक दुरुपयोग होने की आशंका जताई जा रही है।
लोकतंत्र की कसौटी
सिद्धांततः यह संशोधन राजनीति को स्वच्छ बनाने का औजार हो सकता है। लेकिन भारतीय लोकतंत्र का अनुभव बताता है कि सत्ता पक्ष अक्सर संवैधानिक प्रावधानों का इस्तेमाल विपक्ष को अस्थिर करने के लिए करता रहा है।
- अगर एजेंसियाँ निष्पक्ष और समयबद्ध होकर काम करें, तो यह कानून लोकतंत्र की साख बढ़ाएगा।
- लेकिन अगर गिरफ्तारी को ही सरकार गिराने की रणनीति बना लिया गया, तो यह संशोधन लोकतंत्र की बुनियाद पर ही चोट करेगा।
संविधान का 130वाँ संशोधन भारतीय राजनीति के लिए निर्णायक मोड़ हो सकता है। अरविंद केजरीवाल का उदाहरण यह दिखाता है कि बिना इस्तीफ़े के भी सरकारें जेल से चल सकती हैं, जो लोकतंत्र के लिए अस्वाभाविक है। वहीं हेमंत सोरेन का मामला यह बताता है कि समय रहते इस्तीफ़ा देकर राजनीतिक संकट टाला जा सकता है। अब देखना यह है कि यह संशोधन राजनीति को नैतिकता की ओर ले जाएगा या विपक्षी राज्य सरकारों को गिराने का नया हथियार बनेगा। असली परीक्षा इसके लागू होने के बाद होगी।
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