November 21, 2025

MPLADS – राज्यसभा सांसदों के फंड खर्च की तस्वीर: काम में महुआ सबसे आगे, खर्च में दीपक टॉप पर

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राज्यसभा सांसदों के MPLADS फंड का झारखंड में कितना उपयोग हुआ? जानिए 6 सांसदों के कामकाज का रिपोर्ट कार्ड, आंकड़ों और विश्लेषण के साथ।

MPLADS से जनता को मिला क्या? सवालों के घेरे में फंड का उपयोग

MPLADS

MPLADS Jharkhand : राज्यसभा में झारखंड का प्रतिनिधित्व कर रहे छह सांसदों को क्षेत्रीय विकास के लिए केंद्र सरकार की तरफ से करोड़ों रुपये दिए गए, लेकिन जब इन पैसों से ज़मीनी बदलाव लाने की बात आई – तो हालात कुछ खास नहीं दिखे।

सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (MPLADS) के तहत झारखंड को अब तक 109.16 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ, जिसमें से सिर्फ 45.21 करोड़ (41.41%) ही खर्च हो सके। लेकिन इसके पीछे की असमानता और कार्यशैली का फर्क तब और साफ हो जाता है, जब हम एक-एक सांसद का प्रदर्शन देखते हैं।


महुआ मांझी : छोटे प्रोजेक्ट, बड़ा असर

जेएमएम सांसद महुआ मांझी ने न केवल राशि खर्च में बल्कि योजनाओं की पूर्णता दर में भी सबसे बेहतर प्रदर्शन किया है। उनके 286 स्वीकृत प्रोजेक्ट्स में से 75 पूरे हो चुके हैं। उन्होंने कुल 11.64 करोड़ रुपये खर्च किए, जो उनके हिस्से की कुल राशि का 65.17% है।

ये दर्शाता है कि छोटे, ठोस और तेज़ी से पूरे होने वाले कार्यों पर फोकस किया जाए तो असर दिखता है।

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दीपक प्रकाश : खर्च सबसे ज्यादा, लेकिन प्रोजेक्ट अधूरे

भाजपा सांसद दीपक प्रकाश ने 22.76 करोड़ रुपये के आवंटन में से 12.47 करोड़ (54.79%) खर्च कर दिए। लेकिन, 281 योजनाओं में से सिर्फ 34 (12.10%) ही पूरी हो सकीं।

यानी, फंड का उपयोग तो हुआ लेकिन ज़मीन पर उसका असर बहुत सीमित रहा – शायद बड़े और जटिल प्रोजेक्ट्स के कारण।


आदित्य साहू : योजनाओं की गुणवत्ता पर फोकस

आदित्य साहू ने संतुलित काम किया। उन्होंने 10.68 करोड़ (59.80%) खर्च किए और 180 में से 60 योजनाएं (33.33%) पूरी कराई – यह महुआ मांझी के बाद दूसरी सबसे बेहतर पूर्णता दर है।

उनका प्रदर्शन बताता है कि सीमित योजनाएं, गहरी निगरानी और सटीक चयन से अच्छा असर डाला जा सकता है।


शिबू सोरेन: सबसे ज्यादा योजनाएं, सबसे कम असर

जेएमएम के वरिष्ठ नेता शिबू सोरेन की 831 योजनाएं स्वीकृत हुईं – लेकिन केवल 41 योजनाएं (4.93%) पूरी हो सकीं और खर्च हुआ महज 3.90 करोड़ (17.13%)

इतनी बड़ी संख्या में योजनाएं, पर न्यूनतम निष्पादन – यह कहीं न कहीं प्रशासनिक लचरता और प्रबंधन की कमी का संकेत है।


सरफराज अहमद और प्रदीप वर्मा : एक भी योजना पूरी नहीं हुई

ये दोनों सांसद प्रदर्शन के लिहाज़ से सबसे कमजोर कड़ी हैं।

  • जेएमएम सांसद सरफराज अहमद ने 77 योजनाएं स्वीकृत कराई थीं, लेकिन एक भी योजना पूरी नहीं हुई।
  • भाजपा सांसद प्रदीप वर्मा ने 131 योजनाएं पास कराईं, पर कोई भी धरातल पर नहीं उतरी।
    फिर भी दोनों ने क्रमशः 1.19 करोड़ (9.18%) और 5.33 करोड़ (41.13%) खर्च किए।

इन आंकड़ों से सवाल उठता है – आखिर ये पैसे कहां और कैसे खर्च हुए?


सांसदों का प्रदर्शन (MPLADS Fund) – एक नजर में


सिस्टम की चुनौती, और जनता की निगाहें

जहां एक ओर महुआ मांझी और आदित्य साहू ने बेहतर उदाहरण पेश किया है, वहीं बाकी सांसदों को जवाबदेही तय करनी होगी। छोटे, व्यावहारिक और सामयिक प्रोजेक्ट्स के ज़रिए ही ज़मीनी बदलाव लाया जा सकता है।

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विशेषज्ञों का कहना है कि:

नियमित मॉनिटरिंग, पारदर्शी पोर्टल और स्थानीय प्रशासन से समन्वय – ये तीन उपाय MPLADS फंड के बेहतर उपयोग की कुंजी हो सकते हैं।


आगे की राह: जनता सवाल पूछेगी

राज्यसभा सांसदों को सीधे जनता नहीं चुनती — यह सच है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनकी कोई जवाबदेही नहीं बनती। दरअसल, ये सांसद राजनीतिक दलों के माध्यम से राज्य विधानसभाओं या गठबंधन के अंकगणित से संसद तक पहुंचते हैं, लेकिन जिन योजनाओं और फंड का वे उपयोग करते हैं, वह पैसा जनता का ही होता है — देश के टैक्स देने वाले नागरिकों का पैसा।

इसलिए यह तर्क कि उनकी सीधी जवाबदेही जनता के प्रति नहीं है, केवल तकनीकी हो सकता है, नैतिक नहीं।

जनहित के नाम पर सांसदों को MPLADS जैसी योजनाओं के तहत करोड़ों रुपये मिलते हैं। फिर चाहे वह राज्यसभा हो या लोकसभा, इस पैसे का उद्देश्य एक ही होता है — स्थानीय विकास और जनता की जरूरतों की पूर्ति। इसलिए अगर कोई राज्यसभा सांसद अपने फंड का उपयोग नहीं कर रहा, योजनाएं अधूरी छोड़ रहा या परियोजनाएं जमीन पर उतर ही नहीं पा रहीं — तो जवाबदेही सिर्फ उस सांसद की नहीं, बल्कि उस राजनीतिक पार्टी की भी बनती है जिसने उसे संसद भेजा है।

आखिर चुनावों में जनता सवाल करती है — और यह सवाल पार्टी से भी होता है कि आपने जिसे राज्यसभा भेजा, उसने पांच साल में आपके नाम पर क्या काम किया?

यही कारण है कि राजनीतिक दलों को न केवल अपने राज्यसभा सांसदों के प्रदर्शन पर नजर रखनी चाहिए, बल्कि नियमित रूप से रिपोर्ट कार्ड भी जनता के सामने लाना चाहिए। पारदर्शिता और जवाबदेही लोकतंत्र की रीढ़ हैं — और यह सिद्धांत राज्यसभा पर भी उतना ही लागू होता है, जितना लोकसभा पर।

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